Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 172
________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ] [१०१ इस प्रकार श्री समकित रत्न पदार्थ के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं - १. श्री जिनवचन में शंका की हो, २. परदर्शन की आकांक्षा की हो, ३. परपाखंडी की प्रशंसा की हो, ४. परपाखंडी का परिचय किया हो, ५. धर्मफल के प्रति संदेह किया हो। ऐसे मेरे सम्यक्त्व-रत्न पर मिथ्यात्व रूपी रज-मैल लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। भावार्थ – राग-द्वेष आदि आभ्यन्तर शत्रुओं को जीतने वाले वीतराग अरिहंत भगवान् मेरे देव हैं, जीवनपर्यंत संयम की साधना करने वाले निर्ग्रन्थ गुरु हैं तथा वीतरागकथित अर्थात् श्री जिनेश्वर देव द्वारा उपदिष्ट अहिंसा, सत्य आदि ही मेरा धर्म है । यह देव, गुरु, धर्म पर श्रद्धास्वरूप सम्यक्त्व व्रत मैंने यावज्जीवन के लिये ग्रहण किया है एवं मुझको जीवादि पदार्थ का परिचय हो, भली प्रकार जीवादि तत्त्वों को तथा सिद्धांत के रहस्य को जानने वाले साधुओं की सेवा प्राप्त हो, सम्यक्त्व से भ्रष्ट तथा मिथ्यात्वी जीवों की संगति कदापि न हो, ऐसी सम्यक्त्व के विषय में मेरी श्रद्धा बनी रहे। __ मैंने वीतराग के वचन में शंका की हो, जो धर्म वीतराग द्वारा कथित नहीं है, उसकी आकांक्षा की हो, धर्म के फल में संदेह किया हो, या साधु साध्वी आदि महात्माओं के वस्त्र, पात्र, शरीर आदि को मलिन देख कर घृणा की हो, परपाखण्डी का चमत्कार देख कर उसकी प्रशंसा की हो तथा परपाखण्डी से परिचय किया हो तो मैं उसकी आलोचना करता हूँ। मेरा वह सब पाप निष्फल हो। गुरु-गुण-स्मरणसूत्र पंचिदिय-संवरणो, तह नवविह - बंभचेर - गुत्तिधरो। चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारस-गुणेहिं संजुत्तो॥ पंच महाव्वय - जुत्तो, पंचविहायार - पालण-समत्यो। पंच - समिओ - तिगुत्तो, छत्तीसगुणो गुरु मज्झ॥ भावार्थ - पांच इन्द्रियों के वैषयिक चांचल्य को रोकने वाले, ब्रह्मचर्य की नवविध गुप्तियों को - नौ वाड़ों को धारण करने वाले, क्रोध आदि चार प्रकार के कषायों से मुक्त इस प्रकार अठारह .गुणों से संयुक्त, अहिंसा आदि पांच महाव्रतों से युक्त, पांच आचारों को पालने में समर्थ, पांच समिति और तीन गुप्ति को धारण करने वाले, इस प्रकार उक्त छत्तीस गुणों वाले श्रेष्ठ साधु मेरे गुरु हैं।

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