Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 157
________________ ८६ ] [ आवश्यकसूत्र 1 का कोई भी सुख ऐसा नहीं है, जो दुःख से असंभिन्न हो । क्योंकि व्यक्ति अज्ञान और मोह के वशीभूत हो कर बाह्य पदार्थों में सुख ढूंढता है। लेकिन जो पदार्थ आज सुखद और प्रीतिकर प्रतीत होते हैं, कालान्तर में वे ही कष्टप्रद, क्लेशजनक एवं शोक संताप वृद्धि के कारण बन जाते हैं। जिस धन की प्राप्ति के लिये व्यक्ति छल, कपट और माया का सेवन करता है, जिसे प्राप्त करने के लिये दिन-रात एक करता है, वही धन प्राणों के नाश का कारण बन जाता है। कर, टेक्स आदि की चोरी के कारण कारागृह का मेहमान भी बनाता है। जो पुत्र बचपन में माता-पिता की आँखों का तारा, दिल का टुकड़ा, हृदय का दुलारा होता है, वही बड़ा होने पर दुराचारी बन जाने के कारण हृदय का शूल, आँखों का कांटा, कुल का कलंक बन जाता है। उसका नाम सुनने में भी कष्ट होता है। लज्जा से मस्तक झुक जाता है। अगर पदार्थ में सुख होता तो एक पदार्थ एक समय सुख का और दूसरे समय दुःख का कारण कैसे बन जाता ? सच्चे अर्थ में वह सच्चा सुख नहीं, सुखाभास है । 'संयोगमूला जीवेन प्राप्ता दुःखपरम्परा' सच तो यह है कि आत्मभिन्न बाह्य पदार्थों के संयोग के कारण जीव अनादि काल से दुःखों को भुगत रहा है। सच्चा सुख तो सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय रूप धर्म की साधना से ही प्राप्त हो सकता है । इसलिये आचार्य हरिभद्र लिखते हैं सर्वदुःख - प्रहीणमार्ग - सर्वदुःख - प्रहीणो मोक्षस्तत्कारणमित्यर्थः । सिज्झति - जैनधर्म में आत्मा के अनंत गुणों का पूर्ण विकास हो जाना ही सिद्धत्व माना गया I जब तक ज्ञान अनंत न हो, दर्शन अनंत न हो, चारित्र अनंत न हो, वीर्य अनंत न हो, अर्थात् प्रत्येक गुण अनंत न हों, तब तक जैनधर्म मोक्ष होना स्वीकार नहीं करता । 'सिज्झंति' का अर्थ है बताये हुए मार्ग में स्थित जीव सिद्ध होते हैं । भगवन् के -- - बुज्झति – बुद्ध होते हैं। बुद्ध अर्थात पूर्ण ज्ञानी। यहां शंका हो सकती है कि बुद्धत्व तो सिद्ध होने के पहले ही प्राप्त हो जाता है। आध्यात्मिक विकास के क्रमस्वरूप चौदह गुणस्थानों में, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन आदि गुण तेरहवें गुणस्थान में ही प्राप्त हो जाते हैं और मोक्ष, चौदहवें गुणस्थान के बाद होता है। अतः सिझंति के बाद बुज्झति कहने का क्या अभिप्राय है ? समाधान केवलज्ञान तेरहवें गुणस्थान में प्राप्त हो जाता है अतः विकासक्रम के अनुसार बुद्धत्व का स्थान पहला है और सिद्धत्व का दूसरा, परंतु यहां सिद्धत्व के बाद जो बुद्धत्व कहा है उसका अभिप्राय यह है कि सिद्ध हो जाने के बाद भी बुद्धत्व बना रहता है, नष्ट नहीं होता है। कुछ दार्शनिक मुक्तात्माओं में ज्ञान का अभाव हो जाना कहते हैं, उनकी मान्यता का निषेध इस विशेषण से हो जाता है । मुच्चंति – 'मुच्चंति' पद का अर्थ है - कर्मों से मुक्त होना। जब तक एक भी कर्म - परमाणु आत्मा सम्बन्धित रहता है तब तक मोक्ष नहीं हो सकता। आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र के दसवें अध्ययन के प्रथम सूत्र में लिखा है - " कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः" अर्थात् समस्त कर्मों के नष्ट होने पर मोक्ष होता है ।

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