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चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ]
४. मोहनीय कर्म की दो प्रकृतियों के क्षय से
१. क्षीणदर्शनमोहनीय,
२. क्षीणचारित्रमोहनीय |
५. आयु- कर्म की चार प्रकृतियों के समूल क्षय से
६. नाम-कर्म की दो प्रकृतियों के क्षय से
१. क्षीण नैरयिकायु, २ तिर्यञ्चायु, ३. मनुष्यायु, ४. देवायु ।
गोत्र-कर्म की दो प्रकृतियों के क्षय से
१. क्षीणउच्चगोत्र,
२. क्षीणनीचगोत्र ।
करना ।
१. क्षीणशुभनाम, २. क्षीणअशुभनाम ।
८. अन्तराय - कर्म की पांच प्रकृतियों के क्षय से
१. क्षीणदानान्तराय,
२. क्षीणलाभान्तराय,
३. क्षीणभोगान्तराय,
४. क्षीणउपभोगान्तराय,
बत्तीस योग संग्रह
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५.
५. क्षीणवीर्यान्तराय ।
इनके विषय में जो अतिचार किया गया हो तो मैं उससे निवृत्त होता हूँ ।
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- समवायांगसूत्र
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१. गुरुजनों के समक्ष दोषों की आलोचना करना ।
२. किसी के दोषों की आलोचना सुनकर किसी अन्य से न कहना ।
३. आपत्ति आने पर भी धर्म में दृढ़ रहना ।
४. आसक्तिरहित तप करना ।
सूत्रार्थ ग्रहण रूप ग्रहण शिक्षा एवं प्रतिलेखना आदि रूप आसेवना - आचार शिक्षा का अभ्यास