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चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ]
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औदारिक भोगों के भी इसी तरह नौ भेद समझ लेने चाहिये । कुल भेद मिलाकर अठारह होते हैं। ज्ञाताधर्मकथा के १९ अध्ययन -
१. मेघकुमार (उत्क्षिप्त), २. धन्ना सार्थवाह (संघाट), ३. मयूराण्ड, ४. कर्म, ५. शैलक, ६. तुम्बलेप, ७. रोहिणी, ८. मल्ली, ९. माकन्दी, १०. चन्द्र, ११. दावदववृक्ष, १२. उदक, १३. मण्डूक, १४. तेतलिप्रधान, १५. नन्दीफल, १६. अवरकंका, १७. आकीर्णक, १८. सुंसुमा, १९. पुण्डरीक।
___ उक्त उन्नीस उदाहरणों के भावानुसार साधुधर्म की साधना न करना अतिचार है। बीस असमाधिस्थान -
चित्त की एकाग्रतापूर्वक मोक्षमार्ग में स्थित होने को समाधि कहते हैं । इसके विपरीत असमाधि है। असमाधि के बीस स्थान निम्नलिखित हैं -
१. दवदव-जल्दी-जल्दी चलना। २. बिना पूंजे चलना। ३. बिना उपयोग के प्रमार्जन करना। ४. अमर्यादित शय्या और आसन रखना। ५. गुरुजनों का अपमान करना। ६. स्थविरों की अवहेलना करना। ७. भूतोपघात-जीवों के घात का चिन्तन करना। ८. क्षण-क्षण में क्रोध करना। ९. परोक्ष में अवर्णवाद करना। १०. शंकित विषय में बार-बार निश्चयपूर्वक बोलना। ११. नित्य नया कलह करना। १२. शान्त हुये कलह को पुनः उत्तेजित करना। १३. अकाल में स्वाध्याय करना। १४. सचित्त रज-सहित हाथ आदि से भिक्षा लेना। १५. प्रहर रात बीतने के बाद जोर से बोलना। १६. गच्छ आदि में छेद-भेद, फूट-अनेकता करना।