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चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ]
गिराने वाले, उल्टे मुंह आकाश में उछालकर गिरते समय बर्छा आदि भौंकने वाले ।
२. अम्बरीष
अधमरे कर देने वाले ।
वाले ।
३. श्याम
कोड़ा आदि से पीटने वाले, हाथ-पैर आदि अवयवों को बुरी तरह काटने वाले, शूल - सुई आदि से बींधने वाले आदि ।
४. शबल
५. रौद्र
६. उपरौद्र
७. काल
खिलाने वाले ।
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८. महाकाल
भूनने वाले ।
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१०. धनुष
११. कुम्भ
१२. बालुक
मुद्गर आदि द्वारा नारकियों के अंग-अंग के जोड़ों को चूर-चूर करने वाले । नरकस्थ जीवों को खूब ऊँचे उछाल कर गिरते समय तलवार, भाले आदि में पिरोने
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नैरयिकों को मुद्गर आदि से कूट कर, करोंत, कैंची आदि से टुकड़े-टुकड़े कर
९. असिपत्र
तलवार जैसे तीखे पत्तों के वन की विकुर्वणा करके उस वन में छाया की इच्छा
से आये हुए नारकी जीवों को वैक्रिय वायु द्वारा तलवार की धार जैसे तीखे पत्ते गिराकर छिन्न-भिन्न करने
वाले।
नारकीय जीवों के हाथ-पैर तोड़ने वाले ।
कुंभी आदि में पकाने वाले ।
पूर्वजन्म के मांसाहारी जीवों को उन्हीं की पीठ आदि का मांस काट-काट कर
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धनुष से छेदने वाले ।
ऊंटनी आदि के आकार वाली कुम्भियों में पकाने वाले ।
वज्रमय तप्त बालुका में चनों के समान तड़तड़ाहट करते हुए नारकी जीवों को
१३. वैतरणी
अत्यन्त दुर्गन्ध वाली राध-लोहू से भरी हुई एवं तपे हुये जस्ता और कथीर की उकलती हुई, अत्यन्त क्षार से युक्त उष्ण पानी से भरी हुई वैतरणी नदी की विकुर्वणा करके उसमें नरक के जीवों को डालकर अनेक प्रकार पीड़ित करने वाले ।
१४. खरस्वर तीखे वज्रमय कांटे वाले ऊंचे-ऊंचे शाल्मली वृक्षों पर चढ़ाकर चिल्लाते हुये नारकी जीवों को खींचने वाले, मस्तक पर करोत रखकर चीरने वाले ।
१५. महाघोष
अत्यन्त वेदना के डर से मृगों की तरह इधर-उधर भागते हुये नारक जीवों को बाड़े में पशुओं की तरह घोर गर्जना करके रोकने वाले। इनके द्वारा होने वाले पाप की अनुमोदना आदि से जो अतिचार लगा हो, तो मैं उससे निवृत्त होता हूँ ।