________________
६६]
[ आवश्यकसूत्र
१७. गण को दुःख उत्पन्न हो, ऐसी भाषा बोलना। १८. हरएक के साथ विरोध करना। १९. दिनभर कुछ न कुछ खाते-पीते रहना।
२०. अनेषनीय आहार आदि का सेवन करना। इक्कीस शबलदोष -
शबल दोष साधु के लिये सर्वथा त्याज्य हैं । जिन कार्यों के करने से चारित्र कर्बुर (शबल) अर्थात् मलीन होकर नष्ट हो जाता है, उन्हें शबलदोष कहते हैं । वे इस प्रकार हैं - .
१. हस्तकर्म करना। २. मैथुन-अतिक्रम, व्यतिक्रम एवं अतिचार रूप से मैथुन सेवन करना। ३. रात्रिभोजन करना। ४. आधाकर्म-साधु के निमित्त बनाया हुआ भोजन लेना। ५. राजपिण्ड लेना।
६. औद्देशिक - साधु के निमित्त अथवा खरीदा हुआ, स्थान पर सामने लाकर दिया हुआ, उधार लाया हुआ आदि भोजन वगैरह लेना।
७. बार-बार प्रत्याख्यान भंग करना। ८. छह मास के अन्दर गण से गणान्तर में जाना। ९. एक महीने में तीन बार उदक का लेप लगाना (नदी आदि में उतरना)। १०. एक मास में तीन बार मातृस्थान (माया का) सेवन करना। ११. शय्यातरपिण्ड का सेवन करना। १२. जान-बूझकर हिंसा करना। १३. जान-बूझकर झूठ बोलना। १४. जान-बूझकर चोरी करना।। १५. जान-बूझकर सचित्त पृथ्वी पर बैठना, सचित्तशिला पर सोना आदि। १६. जीव सहित पीठ, फलक आदि का सेवन करना। १७. जान-बूझकर कन्द-मूल, छाल, प्रवाल, पुष्प, फूल, बीज आदि का भोजन करना।