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चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ]
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कर पाता। यह प्रतिमा दो मास की होती है।
३. सामायिकप्रतिमा – इस प्रतिमा में सामायिक तथा देशावकाशिक व्रत का पालन करता है, किन्तु पर्व दिनों में पौषधव्रत का सम्यक् पालन नहीं कर पाता। यह तीन मास की होती है।
४. पौषधोपवासप्रतिमा – पूर्वोक्त सभी नियमों के साथ अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या को प्रतिपूर्ण पौषध उपवास सहित करता है । यह प्रतिमा चार मास की है।
५. कायोत्सर्गप्रतिमा – उपर्युक्त सभी व्रतों का भली-भांति पालन करते हुये प्रस्तुत प्रतिमा के निम्नोक्त नियमों को विशेष रूप से धारण करना होता है -
१. स्नान नहीं करना। २. रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना। ३. धोती की लांघ खुली रखना। ४. दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करना। ५. रात्रि में मैथुन का परिमाण रखना।
इस प्रतिमा का पालन जघन्य एक या दो अथवा तीन दिन, उत्कृष्ट पांच महीने तक किया जाता है। इसे नियम प्रतिमा भी कहा जाता है।
६. ब्रह्मचर्यप्रतिमा - ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना। इस प्रतिमा की काल मर्यादा जघन्य एक रात्रि और उत्कृष्ट छह मास की होती है।
७. सचित्तत्यागप्रतिमा - सचित्त आहार का सर्वथा त्याग करना। यह प्रतिमा जघन्य एक रात्रि और उत्कृष्ट सात मास की होती है।
८. आरंभत्यागप्रतिमा - इस प्रतिमा में स्वयं आरंभ नहीं करता, छह काय के जीवों की दया पालता है। इसकी काल मर्यादा जघन्य एक, दो, तीन दिन और उत्कृष्ट आठ मास की है।
९. प्रेष्यत्यागप्रतिमा - इस प्रतिमा में दूसरों के द्वारा आरम्भ कराने का भी त्याग होता है । वह स्वयं आरम्भ नहीं करता, न दूसरों से कराता है किन्तु अनुमोदन का उसे त्याग नहीं होता है। काल जघन्य एक, दो, तीन दिन है और उत्कृष्ट काल नौ मास है।
१०. उद्दिष्टभक्तत्यागप्रतिमा - इस प्रतिमा में अपने निमित्त बनाया हुआ भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है , उद्दिष्ट भक्त का भी त्याग होता है । उस्तरे से सर्वथा शिरोमुण्डन करना होता है । गृह संबंधी विषयों के पूछे जाने पर यदि जानता है तो 'जानता हूँ' और नहीं जानता है तो नहीं जानता हूँ' इतना मात्र कहे । यह