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[ आवश्यकसूत्र
एगणतीसाए पावसुयप्पसंगेहिं, तीसाए महामोहणीयट्ठाणेहिं, एगतीसाए सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए जोग-संगहेहिं, तेत्तीसाए आसायणाहिं -
१. अरिहंताणं आसायणाए, २. सिद्धाणं आसायणाए, ३. आयरियाणं आसायणाए, ४. उवझायाणं आसायणाए, ५. साहूणं आसायणाए, ६. साहूणीणं आसायणाए,७. सावयाणं आसायणाए, ८. सावियाणं आसायणाए, ९. देवाणं आसायणाए, १०. देवीणं आसायणाए, ११. इहलोगस्स आसायणाए, १२. परलोगस्स आसायणाए, १३. केवलि-पन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणाए, १४. सदेव-मणुयासुरस्स लोगस्स आसायणाए, १५. सव्वापाण-भूय-जीव-सत्ताणं आसायणाए, १६.कालस्स आसायणाए, १७.. सुअस्स आसायणाए, १८. सुयदेवयाए आसायणाए, १९. वायणायरियस्स आसायणाए, जं २०. वाइद्धं, २१.वच्चामेलियं, २२. हीणक्खरं, २३. अच्चक्खरं, २४. पयहीणं, २५. विणयहीणं, २६. जोगहीणं, २७. घोसहीणं, २८. सुठुदिनं, २९. दुद्रुपडिच्छियं, ३०. अकाले कओ सज्झाओ, ३१. काले न कओ सज्झाओ, ३२. असज्झाइए सज्झाइयं, ३३. सज्झाए न सज्झाइयं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
भावार्थ - प्रतिक्रमण करता हूँ - सात भय के स्थानों अर्थात् कारणों से, आठ मद के स्थानों से, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्तियों से अर्थात् उनका सम्यक् पालन न करने से, दसविध क्षमा आदि श्रमण धर्म की विराधना से, ग्यारह उपासक प्रतिमा – श्रावक की प्रतिज्ञाओं से अर्थात् उनकी अश्रद्धा तथा विपरीत प्ररूपणा से, बारह भिक्षु की प्रतिमाओं से – उनकी अश्रद्धा अथवा विपरीत प्ररूपणा से, तेरह क्रिया के स्थानों से, चौदह जीवों के समूह से अर्थात् उनकी हिंसा से, पन्द्रह परमाधार्मिकों से अर्थात् उन जैसा भाव रखने या आचरण करने से, सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के गाथा अध्ययन सहित सोलह अध्ययनों से, सतरह प्रकार के असंयम में रहने से, अठारह प्रकार के अब्रह्मचर्य में वर्तने से, ज्ञातासूत्र के उन्नीस अध्ययनों से अर्थात् उनकी विपरीत श्रद्धा प्ररूपणा करने से, बीस असमाधि के स्थानों से,
इक्कीस शबलों से, बाईस परिषहों से अर्थात् उनको सहन न करने से, सूत्रकृतांगसूत्र के तेईस अध्ययनों से अर्थात् तदनुसार आचरण न करने से या विपरीत श्रद्धा-प्ररूपणा करने से, चौबीस देवों से अर्थात् उनकी अवहेलना करने से, पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं (का यथावत् पालन न करने) से, दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प और व्यवहार – उक्त सूत्रत्रयी के छब्बीस उद्देशन कालों से, सत्ताईस साधु के गुणों से, आचारप्रकल्प- आचारांग तथा निशीथसूत्र के अट्ठाईस अध्ययनों से, उनतीस पापश्रुत के प्रसंगों से, महामोहनीय कर्म के तीस स्थानों से,