Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 122
________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ] एकाग्रता का रूप धारण करती है तब वह आर्तध्यान कहलाती है । २. रौद्रध्यान हिंसा आदि अत्यन्त क्रूर विचार रखने वाला व्यक्ति रुद्र कहलाता है । रुद्र व्यक्ति के मनोभावों को रौद्रध्यान कहा जाता है । अथवा छेदन, भेदन, दहन, बन्धन, मारण, प्रहरण, दमन, कर्तन आदि के कारण राग-द्वेष का उदय हो और दया न हो तो ऐसे आत्म-परिणाम को रौद्रध्यान कहते हैं ।' ३. धर्मध्यान वीतराग की आज्ञा रूप धर्म से युक्त ध्यान को धर्मध्यान कहते हैं । अथवा आगम के पठन व्रतधारण, बन्ध-मोक्षादि, इन्द्रियदमन तथा प्राणियों पर दया करने के चिन्तन को धर्मध्यान कहते हैं । — — ४. शुक्लध्यान कर्ममल को शोधन करने वाला तथा शोक को दूर करने वाला ध्यान शुक्लध्यान है । धर्म ध्यान, शुक्लध्यान का साधन है । कहा भी है I - 'जिसकी इन्द्रियाँ विषय-वासना रहित हों, संकल्पविकल्पादि दोषयुक्त जो तीन योग, उनसे रहित महापुरुष के ध्यान को 'शुक्लध्यान' कहते हैं । - क्रियासूत्र - - जैन परिभाषा के अनुसार प्रस्तुत प्रकरण में हिंसाप्रधान दुष्ट व्यापार - विशेष को 'क्रिया' कहते हैं । विस्तार-पद्धति से क्रिया के २५ भेद माने गये हैं परन्तु अन्य समस्त क्रियाओं का सूत्रोक्त पांच क्रियाओं में ही अन्तर्भाव हो जाता है, अतः मूल क्रियाएं पांच ही मानी जाती हैं । १. कायिकीक्रिया • काय के द्वारा होने वाली क्रिया कायिकी कहलाती हैं इसके तीन भेद माने गये हैं । मिथ्यादृष्टि और अविरत सम्यक् - दृष्टि की क्रिया अविरत - कायिकी कहलाती है, प्रमत्तसंयमी मुनि की १. संछेदनैर्दहन - भञ्जन-मारणैश्च, बन्ध-प्रहार- दमनैर्विनिकृन्तनैश्च ॥ रागोदयो भवति येन न चानुकम्पा, ध्यानं तु रौद्रमिति तत्प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥ २. सूत्रार्थसाधनमहाव्रतधारणेषु, बन्धप्रमोक्षगमनागमहेतुचिन्ता । पञ्चेन्द्रियव्युपरमश्च दया च भूते, [ ५१ ध्यानं तु धर्म्यमिति संप्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥ ३. शोधयत्यष्टप्रकारं कर्ममलं शुचं वा क्लमयतीति शुक्लम् । ४. यस्येन्द्रियाणि विषयेषु पराङ्मुखानि, संकल्पकल्पन विकल्पविकारदोषैः । योगैस्तथा त्रिभिरहो ! निभृतान्तरात्मा, ध्यानं तु शुक्लमिदमस्य समादिशन्ति ॥ - आचार्य नमि ।

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