Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 120
________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ] [४९ को जीतना चाहिये। संज्ञासूत्र - जीवों की इच्छा को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा का अर्थ 'चेतना' भी होता है। प्रस्तुत में मोहनीय एवं असाता वेदनीय कर्म के उदय से जब चेतनाशक्ति विकारयुक्त हो जाती है तब वह 'संज्ञा' पदवाच्य होती है। श्री पन्नवणा के आठवें पद में संज्ञा के दस प्रकार बताये हैं । अनेक सूत्रों में सोलह भेद भी प्ररूपित किये गये हैं। मूल भेद चार हैं – १. आहार, २. भय, ३. मैथुन, ४. परिग्रह। १. आहारसंज्ञा – आहारसंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है । यथा - १. पेट खाली होने से, २. क्षुधा वेदनीय के उदय से, ३. आहार को देखने से और ४. आहार संबंधी चिन्तन करने से। २. भयसंज्ञा - भयसंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है - १. अधैर्य रखने से, २. भय-मोह के उदय से, ३. भय उत्पन्न करने वाले पदार्थ को देखने से, ४. भय का चिन्तन करने से। भय मोहनीय के उदय से आत्मा में जो त्रास का भाव उत्पन्न होता है, वह भयमोहनीय है। ३. मैथुनसंज्ञा - वेदमोहोदय का संवेदन मैथुनसंज्ञा कहलाती है। वह भी चार कारणों से उत्पन्न होती है - १. शरीर पुष्ट बनाने से, २. वेदमोहनीय कर्मोदय से, ३. स्त्री आदि को देखने से और ४. काम-भोग का चिन्तन करने से। ४. परिग्रहसंज्ञा – लोभमोहनीय के उदय से मनुष्य की संग्रहवृत्ति या मूर्छा जाग्रत होती है वह परिग्रहसंज्ञा है। उसके भी चार कारण हैं - १. ममत्व बढ़ाने से, २. लोभमोहनीय के उदय से, ३. धनसम्पत्ति को देखने से और ४. धन-परिग्रह का चिन्तन करने से। विकथासूत्र - संयम को दूषित करने वाले एवं निरर्थक वार्तालाप को विकथा कहते हैं । स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा तथा राजकथा रूप चार विकथाओं के कारण जो कुछ अतिचार लगा हो तो उससे मैं निवृत्त होता हूँ। (नारी साधिका के लिये पुरुष कथा बोलना चाहिये)। १. स्त्रीकथा – अमुक देश, जाति, कुल की अमुक स्त्री सुन्दर अथवा कुरूप होती है। वह बहुत सुन्दर वस्त्राभूषण पहनती है। गाना भी बहुत सुन्दर गाती है । इत्यादि विचार से ब्रह्मचर्य आदि व्रतों में दोष लगने की सम्भावना होने से इसको अतिचार का हेतु माना गया है। २. भक्तकथा – भक्तकथा आवाप, निर्वाप, आरम्भ एवं निष्ठान के भेद से चार प्रकार की है। १. १. आहारसंज्ञा, २. भयसंज्ञा, ३.मैथुनसंज्ञा, ४. परिग्रहसंज्ञा, ५. क्रोधसंज्ञा, ६. मानसंज्ञा, ७. मायासंज्ञा, ८. लोभसंज्ञा ९. लोकसंज्ञा, १०. ओघसंज्ञा।

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