Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 124
________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ] [५३ विशेष ज्ञातव्य - . प्रस्तुत महाव्रतसूत्र के पश्चात् प्रायः सभी प्राप्त प्रतियों और आवश्यकसूत्र के टीकाग्रन्थों में समितिसूत्र का उल्लेख मिलता है । परन्तु आचार्य जिनदास महत्तर ने लिखा है - "एत्थ केवि अण्णं पि पठन्ति" अर्थात् यहां कुछ आचार्य दूसरे पाठ भी पढ़ते हैं । यथा – पांच आश्रव, पांच संवरद्वार, पांच निर्जराद्वार आदि। समितिसूत्र सर्वथा जीव हिंसा से निवृत मुनि की आवश्यक निर्दोष प्रवृत्ति को समिति कहते हैं । उत्तम परिणामों की चेष्टा को भी समिति कहते हैं। समिति आगमों का एक सांकेतिक शब्द है। समिति का अर्थ है - विवेकयुक्त होकर प्रवृत्ति करना। समिति पांच प्रकार की है - १. ईर्यासमिति – कार्य उत्पन्न होने पर विवेकपूर्वक गमन करना तथा दूसरे जीवों को किसी प्रकार की हानि न हो, इस प्रकार उपयोगपूर्वक चलना ईर्यासमिति है। २. भाषासमिति – आवश्यकता होने पर निर्दोष वचन की प्रवृत्ति करना, अर्थात् हित, मित, सत्य एवं स्पष्ट वचन कहना भाषासमिति है। ३. एषणासमिति – आहारादि सम्बन्धी बयालीस दोषों को टालकर निर्दोष भिक्षा ग्रहण करना, ५ मण्डल सम्बन्धी दोष टालकर भोगना एषणासमिति है। ४. आदान-भाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति – वस्त्र, पात्र, पुस्तक आदि उपकरणों को उपयोगपूर्वक ग्रहण करना एवं जीव रहित प्रमार्जित भूमि पर निक्षेपण करना-रखना आदान-भाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति है। ५. पारिष्ठापनिकासमिति – मल, मूत्र, कफ, थूक, नासिकामल आदि या भुक्तशेष भोजन तथा भग्न पात्र आदि परठने योग्य वस्तु जीव रहित एकान्त स्थण्डिल-भूमि में परठना, जीवादि उत्पन्न न हों, एतदर्थ उचित यतनापूर्वक परठना पारिष्ठापनिकासमिति है। जीवनिकायसूत्र - 'जीवनिकाय' शब्द जीव और निकाय इन दो शब्दों से बना है। जीव का अर्थ है – चेतन प्राणी तथा निकाय का अर्थ है – राशि अर्थात् समूह । जीवों की राशि को जीवनिकाय कहते हैं । पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति और त्रस, ये छह निकाय हैं । इन छह निकायों में अर्थात् समूहों में समस्त संसारी जीवों का १. "पडिक्कमामि पंचहिं आसवदारेहिं - मिच्छत-अविरति-पमाद-कसायजोगेहिं, पंचहि अणासवदारेहिं - सम्मत्त-विरति अप्पमाद अकसायित्त-अजोगित्तेहिं, पंचहिं निजर-ठाणेहिं, नाण-दसंण-चरित्त-तव-संजमेहिं।" २. "भाषासमिति म हितमितासंदिग्धार्थभाषणम्।" - आचार्य हरिभद्र।

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204