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[ आवश्यकसूत्र
समावेश हो जाता है। प्रस्तुत सूत्र में छहों जीवसमूहों में से किसी को किसी भी प्रकार की प्रमाद - वश पीड़ा पहुंचायी हो तो उसका प्रतिक्रमण किया गया है।
लेश्यासूत्र
लेश्या का संक्षिप्त अर्थ है - मनोवृत्ति या विचार-तरंग । उत्तराध्ययनसूत्र, भगवतीसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र आदि में लेश्या का विस्तार से तथा सूक्ष्म रूप से वर्णन किया गया है।
लेश्या की व्याख्या करते हुये आचार्य जिनदास महत्तर कहते हैं कि आत्मा के जिन शुभाशुभ परिणामों के द्वारा शुभाशुभ कर्म का आत्मा के साथ संश्लेषण होता है, वे परिणाम लेश्या कहलाते हैं । मन, वचन और काय रूप योग के परिणाम लेश्या पदवाच्य हैं। क्योकि योग के अभाव में अयोगी केवली लेश्या रहित माने गये हैं । लेश्या के मुख्य भेद छह हैं
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१. कृष्णलेश्या - यह मनोवृत्ति सबसे जघन्य है । कृष्णलेश्या वाले के विचार अतीव क्षुद्र, क्रूर, कठोर एवं निर्दय होते हैं। अहिंसा, सत्य आदि से उन्हें घृणा होती है । इहलोक परलोक से एवं परलोक सम्बन्धी अनिष्ट परिणामों से वे नहीं डरते। उन्हें अपने सुख से मतलब होता है - दूसरों के जीवन का कुछ भी हो, इसकी चिन्ता नहीं रहती है। वे अतिशय क्रूर एवं पापी होते हैं ।
२. नीललेश्या यह मनोवृत्ति पहली की अपेक्षा कुछ ठीक है परन्तु उपादेय यह भी नहीं । इस लेश्या वाला ईष्यालु, असहिष्णु, मायावी, निर्लज्ज, एवं रसलोलुप होता है। अपने सुख में मस्त रहता है । परन्तु जिन प्राणियों के द्वारा सुख मिलता है, उनकी भी 'अजपोषण' न्याय के अनुसार कुछ सार-संभाल कर लेता है ।
३. कापोतलेश्या यह मनोवृत्ति भी अप्रशस्त है। इस लेश्या वाला व्यक्ति विचारने, बोलने और कार्य करने में वक्र होता है। कठोरभाषी एवं अपने दोषों को ढँकने वाला होता है।
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४. तेजोलेश्या यह मनोवृत्ति पवित्र है । इसके होने पर मनुष्य नम्र, विचारशील, दयालु एवं धर्म
में अभिरुचि रखने वाला होता है। अपनी सुखसुविधा को गौण करके दूसरों के प्रति अधिक उदार भावना रखता है।
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५. पद्मलेश्या – पद्मलेश्या वाले मनुष्य का जीवन कमल के समान दूसरों को सुगन्ध देने वाला होता है। इस लेश्या वाले का मन शान्त, निश्चल एवं अशुभ प्रवृत्तियों को रोकने वाला होता है। पाप से भय खाता है। मोह और शोक पर विजय प्राप्त करता है। वह मितभाषी, सौम्य एवं जितेन्द्रिय होता है ।
१. 'लिश संश्लेषणे, संश्लिष्यते आत्मा तैस्तै: परिणामान्तरैः । यथा श्लेषेण वर्ण-संबंधी भवति एवं लेश्याभिरात्मनि कर्माणिसंश्लिश्यन्ते । योग- परिणामो लेश्या, जम्हा अयोगिकेवली अलेस्सो ।' - आवश्यक - चूर्णि