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चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ]
पडिक्कमामि तिहिं गुत्तीहिं – मणगुत्तीए, वयगुत्तीए, कायगुत्तीए ।
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पडिक्कमामि तिहिं सल्लेहिं – मायासल्लेणं, नियाणसल्लेणं, मिच्छादंसणसल्लेणं ।
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पडिक्कमामि तिहिं गारवेहिं – इड्ढीगारवेणं, रसगारवेणं, सायागारवेणं । पडिक्कमामि तिहिं विराहणाहिं – नाणविराहणाए, दंसणविराहणाए, चरित्तविराहणाए ।
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भावार्थ अविरति रूप एकविध असंयम का आचरण करने से जो भी अतिचार-दोष लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ ।
दो प्रकार के बन्धनों से लगे दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ अर्थात् उनसे पीछे हटता हूँ। दो प्रकार १. रागबन्धन एवं २. द्वेषबन्धन ।
तीन प्रकार के दण्डों से लगे दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ । तीन दण्ड
१. मनोदण्ड, २. वचनदण्ड एवं ३. कायदण्ड ।
तीन प्रकार की गुप्तियों से अर्थात् उनका आचरण करते हुये प्रमादवश जो भी गुप्तियों सम्बन्धी विपरीताचरणरूप दोष लगे हों, उनका प्रतिक्रमण करता हूँ । तीन गुप्ति – मनोगुप्ति, वचनगुप्ति एवं कायगुप्ति ।
मायाशल्य,
के बन्धन हैं
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तीन प्रकार के शल्यों से होने वाले दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ। तीन शल्य निदानशल्य और मिथ्यादर्शनशल्य |
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तीन प्रकार के गौरव - अभिमान से लगने वाले दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ । तीन गौरव १. आचार्य आदि पद की प्राप्ति रूप ऋद्धि का अहंकार - ऋद्धिगौरव । २. मधुर आदि रस की प्राप्ति का अभिमानरसगौरव तथा ३ सातागौरव साता का अर्थ है आरोग्य एवं शारीरिक सुख । आरोग्य, शारीरिक सुख तथा वस्त्र पात्र शयनासन आदि सुख-साधनों के मिलने पर अभिमान करना एवं न मिलने पर उनकी आकांक्षा करना सातागौरव 1
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तीन प्रकार की विराधनाओं से होने वाले दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ। वे इस प्रकार हैं
१. ज्ञान की तथा ज्ञानी की निंदा करना, ज्ञानार्जन में आलस्य करना, अकाल-स्वाध्याय करना आदि ज्ञानविराधना है ।
२. सम्यक्त्व एवं सम्यक्त्वधारी साधक की विराधना करना दर्शनविराधना है ।
३. अहिंसा, सत्य आदि चारित्र का सम्यक् पालन न करना, उसमें दोष लगाना चारित्रविराधना है । पडिक्कमामि चउहिं कसाएहिं – कोहकसाएणं, माणकसाएणं, मायाकसाएणं, लोभकसाएणं । पडिक्कमामि चउहिं सन्नाहिं – आहारसन्नाए, भयसन्नाए, मेहुणसन्नाए, परिग्गहसन्नाए।