Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 110
________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ] [३९ ___ अवभाषण भिक्षा – भोजन में किसी विशिष्ट वस्तु की याचना करना। स्वाध्याय तथा प्रतिलेखनादोषनिवृत्ति सूत्र पडिक्क मामि, चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए, उभओ कालं भंडोवगरणस्स अप्पडिलेहणाए, दुप्पडिलेहणाए, अप्पमजणाए, दुप्पमजणाए, अइक्कमे, वइक्कमे, अइयारे, अणायारे जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। भावार्थ - स्वाध्याय तथा प्रतिलेखना सम्बन्धी प्रतिक्रमण करता हूँ। यदि प्रमादवश दिन और रात्रि के प्रथम तथा अन्तिम प्रहर रूप चारों कालों में स्वाध्याय न किया हो, प्रातः तथा संध्या दोनों काल में वस्त्रपात्र आदि भाण्डोपकरण की प्रतिलेखना न की हो अथवा सम्यक्-प्रकार से प्रतिलेखना न की हो, प्रमार्जना न की हो, अथवा विधिपूर्वक प्रमार्जना न की हो, इन कारणों से अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार अथवा अनाचार लगा हो तो वे सब मेरे पाप मिथ्या-निष्फल हों। विवेचन - (प्र.) कालपडिलेहणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? (उ.) कालपडिलेहणयाए णं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ। हे भगवन् ! काल की प्रतिलेखना करने से क्या फल होता है ? काल की प्रतिलेखना से ज्ञानावरणकर्म का क्षय होता है और ज्ञान गुण की प्राप्ति होती है। - उत्तराध्ययन सूत्र अ.२९ उपर्युक्त सूत्र काल-प्रतिलेखना का है । आगम में कथन है कि दिन के पूर्व भाग तथा उत्तर भाग में, इसी प्रकार रात्रि के पूर्व भाग तथा उत्तर भाग में, अर्थात् दिवस एवं रात्रि के चारों कालों में नियमित स्वाध्याय करना चाहिये। साथ ही वस्त्र-पात्र रजोहरण आदि की प्रतिलेखना भी आवश्यक है। यदि प्रमादवश उक्त दोनों आवश्यक कर्तव्यों में भूल हो जाय तो उसकी शुद्धि के लिये प्रतिक्रमण करने का विधान है। प्रत्येक वस्तु को उत्पन्न करने, टिकाये रखने, नष्ट करने और संयुक्त को वियुक्त तथा वियुक्त को संयुक्त करने में काल का महत्त्वपूर्ण योगदान है । अत: जीवन की प्रगति के प्रत्येक अंग को आलोकित रखने के लिये काल की प्रतिलेखना करना अर्थात् काल का ध्यान रखना अतीव आवश्यक है। जिस काल में जो क्रिया करना चाहिये उस काल में वही क्रिया की जानी चाहिये । इसलिये उत्तराध्ययन सूत्र में शास्त्रकार ने साधुओं के लिये कालक्रम (Time Table) निर्धारित कर दिया है। साथ ही यह भी निर्दिष्ट कर दिया है - 'काले कालं समायरे' अर्थात् प्रत्येक कार्य नियत समय पर ही करना चाहिये। दिवस और रात्रि का प्रथम और अन्तिम प्रहर स्वाध्याय के लिये निश्चित किया गया है। इस प्रकार अहोरात्र में स्वाध्याय के चार काल हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204