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नमस्कारसूत्र ]
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भव्यों के सहायक तथा अढ़ाई द्वीप रूप लोक में रहे हुये सभी सर्वज्ञ - आज्ञानुवर्ती साधुओं को नमस्कार हो। "साधयति मोक्षमार्गमिति साधुः" अर्थात् जो सम्यग्ज्ञान-दर्शन एवं चारित्र रूप रत्नत्रय की, मोक्षमार्ग की साधना करते हैं, वे साधु हैं।
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