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नमस्कारसूत्र ]
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पापों को पूर्णतया नाश करने वाला है और विश्व के सब मंगलों में प्रथम मंगल है। .
विवेचन – भारतीय-संस्कृति में जैनसंस्कृति का और जैनसंस्कृति में भी जैनधर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान है । जैन परम्परा में नमस्कारमंत्र या नवकारमंत्र से बढ़कर दूसरा कोई मंत्र नहीं है । जैनधर्म अध्यात्मप्रधान धर्म है । अतः उसका मंत्र भी अध्यात्म भावना से ओतप्रोत है । नवकारमंत्र के सम्बन्ध में जैनपरम्परा की मान्यता है कि यह सम्पूर्ण जैन वाङ्मय अथवा चौदह पूर्वो का सार है, निचोड़ है । जैन साहित्य का सर्वश्रेष्ठ मंत्र नवकारमंत्र है । वह दिव्य समभाव का प्रमुख प्रतीक है । इसमें बिना किसी साम्प्रदायिक भेदभाव के, बिना किसी देश, जाति अथवा धर्म की विशेषता के केवल गुण-पूजा का महत्त्व बताया गया है । प्राचीन धर्म-ग्रन्थों में नवकारमंत्र का दूसरा नाम परमेष्ठीमंत्र भी है। जो महान् आत्माएँ परम पद में अर्थात् उच्च स्वरूप में स्थित हैं, वे परमेष्ठी कहलाती हैं।
नवकारमंत्र के नमस्कारमंत्र, परमेष्ठीमंत्र आदि अनेक नाम हैं । परन्तु सबसे प्रसिद्ध नाम नवकारमंत्र ही है । नवकारमंत्र में नौ पद हैं, अतः इसे नवकारमंत्र कहते हैं । पांच पद मूल पदों के हैं और शेष चार पद चूलिका के हैं। अरिहंत आदि पांच पद साधक तथा सिद्ध की भूमिका के हैं और अन्तिम चार पद महामंत्र की महिमा के निदर्शक हैं।
___मुमुक्ष मानवों ने नमस्कार को बहुत महत्त्वपूर्ण माना है। नमस्कार, नम्रता एवं गुणग्राहकता का विशुद्ध प्रतीक है। अपने से श्रेष्ठ एवं जेष्ठ आत्माओं को नमस्कार करने की परम्परा अनादिकाल से अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। अरिहन्तों के बारह, सिद्धों के आठ, आचार्यों के छत्तीस, उपाध्यायों के पच्चीस एवं साधुओं के सत्ताईस गुण हैं। इन गुणों से युक्त इन पाँचों पदों के वाच्य महान् आत्माओं को किया गया नमस्कार इस नश्वर संसार से सदा के लिये छुटकारा दिलाकर शाश्वत शिव-सुख का प्रदाता है।
प्रथम पद अरिहन्त का है । अरिहन्त में दो शब्द हैं – 'अरि' और 'हन्त'। अरि का अर्थ है – रागद्वेष आदि अन्दर के शत्रु और हन्त का अर्थ है - नाश करने वाला।
अरिहन्त पद का दूसरा अर्थ इस प्रकार है – जिसने ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घनघातिक कर्मों का नाश करके केवलज्ञान, केवलदर्शन को प्राप्त कर लिया है, वह जीवन्मुक्त परमात्मा अरिहन्त है।
अरिहन्त पद के आचार्यों ने अनेक पाठान्तरों का उल्लेख किया है, यथा – अरहन्त, अर्हन्त, अरु हन्त, अरोहन्त आदि। जिनके लिये जगत् में कोई रहस्य नहीं रह गया है, जिनके केवलज्ञान-दर्शन से कुछ छिपा नहीं है, वे अरहन्त हैं । जो अशोकवृक्ष आदि प्रातिहार्यों से पूजित हैं, वे अर्हन्त हैं। जिन्हें फिर कभी जन्म नहीं लेना है अर्थात् जो जन्म-मरण से सदा के लिये छुटकारा पा चुके हैं, उन्हें 'अरुहन्त' या 'अरोहन्त' कहते हैं।