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प्रथम अध्ययन : सामायिक ]
विशिष्ट शब्दों का अर्थ
'तस्स'
अतिचारों से दूषित आत्मा की । 'उत्तरीकरणेणं'
डकार आने से ।
उत्कृष्टता या निर्मलता के लिये, ‘विसल्लीकरणेणं' – शल्यरहित करने के लिये । 'ठामि' - करता हूँ । 'उड्डुएणं' 'भमलीए' – चक्कर आ जाने से । 'खेलसंचालेहिं ' खेल - श्लेष - कफ के संचार से । ज्ञान के अतिचार का पाठ
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१. सूत्र
आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा – सुत्तागमे, अत्थागमे तदुभयागमे ।
जं वाइद्धं, वच्चामेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं पयहीणं, विणयहीणं, जोगहीणं, घोसहीणं, सुट्ठदिण्णं, दुट्टु पडिच्छियं, अकाले कओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाए सज्झाइयं, सज्झाए न सज्झाइयं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥
भावार्थ
आगम तीन प्रकार का है
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१. सुत्तागम, २. अत्थागम, ३. तदुभयागम ।
जिसमें अक्षर थोड़े पर अर्थ सर्वव्यापक, सारगर्भित, संदेहरहित, निर्दोष तथा विस्तृत हो उसे विद्वान् लोग 'सूत्र' कहते हैं ।
सूत्र रूप आगम 'सूत्रागम' कहलाता है तथा जो मुमुक्षुओं से प्रार्थित हो उसे 'अर्थागम' कहते हैं । केवल सूत्रागम से प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता, इसलिये सूत्र और अर्थरूप 'तदुभयागम' कहा है। इस आगम का पाठ करने में जो अतिचार - दोष लगा हो, उसका फल मिथ्या हो। वे अतिचार इस प्रकार हैं
के ' अक्षर उलट-पलट पढ़े हों ।
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३. हीन अक्षर युक्त अर्थात् कोई अक्षर कम करके पढ़ा हो ।
४. अधिक अक्षर युक्त पढ़ा हो।
२. एक ही शास्त्र में अलग-अलग स्थानों पर आये हुए समान अर्थ वाले पाठों को एक स्थान पर लाकर पढ़ा हो अथवा अस्थान में विराम लिया हो या अपनी बुद्धि से सूत्र बनाकर सूत्र में डालकर पढ़े हों।
५. पदही पढ़ा हो
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१. इस तरह तीन प्रकार के आगम रूप ज्ञान के विषय में कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं ।
२. भणतां गुणतां विचारतां ज्ञान और ज्ञानवन्त की आशातना की हो तो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । '