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द्वितीय अध्ययन : चतुर्विंशतिस्तव ]
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हों ॥५॥
जिनकी इन्द्रादि देवों तथा मनुष्यों ने स्तुति की है, वन्दना की है, भाव से पूजा की है और जो सम्पूर्ण लोक में सब से उत्तम हैं, वे तीर्थंकर भगवान् मुझे आरोग्य अर्थात् आत्म-स्वास्थ्य या सिद्धत्व अर्थात् आत्म-शांति, बोधि-सम्यक् दर्शनादि रत्नत्रय का पूर्ण लाभ तथा श्रेष्ठ समाधि प्रदान करें ॥ ६ ॥
__ जो चन्द्रमाओं से भी विशेष निर्मल हैं, जो सूर्यों से भी अधिक प्रकाशमान हैं, जो स्वयंभूरमण जैसे महासमुद्र के समान गंभीर हैं, वे सिद्ध भगवान् मुझे सिद्धि प्रदान करें, अर्थात् उनके आलम्बन से मुझे सिद्धि अर्थात् मोक्ष प्राप्त हो ॥७॥
विवेचन - पहले अध्ययन में सावध योग की निवृत्ति रूप सामायिक का निरूपण करके अब चतुर्विंशतिस्तव रूप इस दूसरे अध्ययन में समस्त सावद्य योगों की निवृत्ति का उपदेश होने से सम्यक्त्व की विशुद्धि तथा जन्मान्तर में भी बोधि और सम्पूर्ण कर्मों के नाश के कारण होने से परम उपकारी तीर्थंकर भगवन्तों का गुण-कीर्तन अर्थात् स्तवन किया गया है।
जो केवलज्ञान रूपी सूर्य अथवा ज्ञान के द्वारा देखा जाय उसे व्युत्पत्ति की उपेक्षा से 'लोक' कहते हैं । यहाँ जैन परिभाषा के अनुसार 'लोक' शब्द से पञ्चास्तिकाय का ग्रहण है। शास्त्र में द्रव्य, क्षेत्र, काल
और भाव रूप चतुर्विध लोक का भी कथन है । यहाँ इन सभी का ग्रहण समझ लेना चाहिये । इस समस्त लोक को प्रवचन रूपी दीपक द्वारा प्रकाशित करने वाले, प्राणियों को दुःखों से छुड़ाकर सुगति में धारण करने वाले, धर्म रूप तीर्थ की स्थापना करने वाले, रागादि कर्मशत्रुओं को जीतने वाले चौबीस तीर्थंकरों की मैं स्तुति करता हूँ।
इस प्रकार चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करने की सामान्य रूप से प्रतिज्ञा करने के पश्चात् नामग्रहणपूर्वक विशेष रूप से स्तुति की गई है । जो लोकालोक के स्वरूप को जानने वाले, परम पद को प्राप्त होने वाले, भव्य जनों के आधारभूत, धर्म रूपी बगीचे को प्रवचन रूप जल से सींचने वाले तथा वृषभ के चिह्न से युक्त हैं , ऐसे श्री ऋषभदेव स्वामी को मैं वन्दन करता हूँ॥
__ जो रागद्वेष को जीतने वाले हैं तथा जब वे गर्भ में आये तब चौपड़ खेलते माता की हार न होने से जिनका नाम 'अजित' पड़ा, उन श्री अजितनाथ को मैं वन्दन करता हूँ।
जो अनन्त सुख स्वरूप हैं और जिनके गर्भ में आते ही धान्यादि के अधिक संभव होने से दुर्भिक्ष मिटकर सुभिक्ष हो गया ऐसे श्री सम्भवनाथ को वन्दन करता हूँ।
जो भव्य जीवों को हर्षित करने वाले हैं और गर्भ में आने पर जिनका इन्द्र ने बार-बार स्तवनअभिनन्दन किया उन श्री अभिनन्दन स्वामी को मैं वन्दन करता हूँ।
इस प्रकार विभिन्न विशेषताओं से युक्त केवलज्ञानियों में श्रेष्ठ चौबीस तीर्थंकर हैं, वे मुझ पर प्रसन्न