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इच्छामि खमासमणो
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, अणुजाणह मे मिउग्गहं, निसीहि अहोकायं कायसंफासं, खमणिज्जो भे किलामो, अप्पकिलंताणं, बहुसुभेणं भे दिवसो वइक्कंतो ? जत्ता भे ? जवणिज्जं च भे ? खामेमि खमासमणो ! देवसिअं वइक्कमं, आवस्सियाए पडिक्कमामि । खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणुदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए, सव्वकालियाए सव्वमिच्छो वयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स खमासमणो ! पडिक्कम मि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।
हे क्षमावान् श्रमण ! मैं अपने शरीर को पाप-क्रिया से हटाकर
भावार्थ इच्छा निवेदन यथाशक्ति वन्दना करना चाहता हूँ ।
[ ३ ] तृतीय अध्ययन : वन्दन
अनुज्ञापना इसलिये मुझको परिमित भूमि (अवग्रह ) में प्रवेश करने की आज्ञा दीजिये । पाप क्रिया को रोक कर मैं आपके चरणों का मस्तक से स्पर्श करता हूँ । मेरे द्वारा छूने से आपको बाधा हुई हो तो उसे क्षमा कीजिये ।
शरीरयात्रा-पृच्छा
संयमयात्रा-पृच्छा
पीड़ा से तो रहित है ?
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आपने अग्लान अवस्था में रहकर बहुत शुभ क्रियाओं से दिवस बिताया है ? आपकी संयमयात्रा तो निर्बाध है ? और आपका शरीर, मन तथा इन्द्रियों की
अपराध क्षमापना हे क्षमावान् श्रमण ! मैं आपको दिवस सम्बन्धी अपराध के लिये खमाता हूँ और आवश्यक क्रिया करने में जो विपरीत अनुष्ठान हुआ है उससे निवृत्त होता हूँ । आप क्षमाश्रमण की दिवस में की हुई तेतीस में से किसी भी आशातना द्वारा मैंने जो दिवस सम्बन्धी अतिचार सेवन किया हो' उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ तथा किसी भी मिथ्या भाव से की हुई, दुष्ट मन से, वचन से और काया से की हुई, क्रोध, मान, माया और लोभ से की हुई, भूतकालादि सर्वकाल सम्बन्धी सर्व मिथ्योपचार से की गई, धर्म का उल्लंघन करने वाली आशातना के द्वारा जो मैंने दिवस सम्बन्धी अतिचार सेवन किया हो, तो हे क्षमाश्रमण ! उससे मैं निवृत्त होता हूँ, उसकी मैं निन्दा करता हूँ और विशेष निन्दा करता हूँ, गुरु के समक्ष निन्दा करता १. रात्रि प्रतिक्रमण करते समय