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तृतीय अध्ययन : वन्दन ]
करना चाहता हूँ, अत: आप मुझे मितावग्रह (जहाँ गुरु महाराज विराजित हों, उनके चारों ओर की साढ़े तीन हाथ भूमि) में प्रवेश करने की आज्ञा दीजिये ।
गुरु शिष्य को 'अनुजानामि' अर्थात् आज्ञा देता हूँ, कहकर प्रवेश की आज्ञा देते हैं । आज्ञा पाकर शिष्य कहता है- हे गुरु महाराज ! मैं सावद्य व्यापारों को रोककर मस्तक और हाथ से आपके चरणों को स्पर्श करता हूँ । इस तरह वन्दना करने से मेरे द्वारा आपको किसी प्रकार का कष्ट पहुँचा हो तो आप उसे क्षमा करें । खामेमि खमासमणो! देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि अर्थात् हे क्षमाश्रमण ! दिवस सम्बन्धी जो कुछ अपराध हो चुका है उसके लिये क्षमा चाहता हूँ और भविष्य में आपकी आज्ञा की आराधना रूप आवश्यक क्रिया के द्वारा अपराध से अलग रहूँगा, अर्थात् अपराध नहीं करने का प्रयत्न करूंगा।
वन्दना विधि
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'इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए' वन्दना के समय उपर्युक्त सूत्रांश बोलकर अवग्रह में प्रवेश करने की आज्ञा के लिये अवग्रह से बाहर ही खड़ा रहकर दोनों हाथ ललाट प्रदेश पर रखकर गुरु के सामने शिर झुकाए। इसका आशय यह है कि वह गुरुदेव की आज्ञाओं को सदैव मस्तक पर वहन करने के लिये कृतप्रतिज्ञ है ।
प्रथम के तीन आवर्त
'अहो'-' कायं ' 'कार्य'
इस प्रकार दो-दो अक्षरों से पूरे होते हैं । कमलमुद्रा से अंजलिबद्ध दोनों हाथों से गुरु चरणों को स्पर्श करते हुये मन्द स्वर से 'अ' अक्षर कहना, तत्पश्चात् अंजलिबद्ध हाथों को मस्तक पर लगाते हुये उच्च स्वर से 'हो' अक्षर कहना, यह पहला आवर्त है । इसी प्रकार ‘का....यं' और 'का....यं' के शेष दो आवर्त भी किए जाते हैं ।
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अगले तीन आवर्त - १. ' जत्ता भे, ' २. 'जवणि, ' ३. 'ज्जं च भे' - इस प्रकार तीन-तीन अक्षरों के होते हैं। कमलमुद्रा से अंजलिबद्ध दोनों हाथों से गुरुचरणों को स्पर्श करते हुये अनुदात्त मन्द स्वर से 'ज' अक्षर कहना चाहिये । पुनः हृदय के पास अञ्जलि लाते हुये स्वरित-मध्यम स्वर से 'त्ता' अक्षर कहना चाहिये फिर अपने मस्तक को छूते हुये उदात्त स्वर से ' भे' अक्षर कहना चाहिये। यह प्रथम आवर्त है। इसी पद्धति से 'जव णि...' और 'ज्जच... 'ये शेष दो आवर्त भी करने चाहिये । प्रथम 'खमासमणो' के छह और इसी प्रकार दूसरे 'खमासमणो' के छह, कुल बारह आवर्त होते हैं ।
इस प्रकार शिष्य, अवग्रह के बाहर प्रथम इच्छा - निवेदन-स्थान में यथाजात मुद्रा से दोनों हाथों में रजोहरण लिये हुये आधा शरीर झुकाकर नमन करता है और 'इच्छामि खमासमणो' से लेकर 'निसीहियाए' तक का पाठ पढ़कर वन्दन करता शिष्य वन्दन करने की इच्छा निवेदन करता है। शिष्य के इस प्रकार निवेदन करने के पश्चात् अवग्रह से बाहर रहकर ही 'तिक्खुत्तो' के पाठ से वन्दन कर लेना चाहिये । अथवा गुरु