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प्रथम अध्ययन : सामायिक ]
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स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है, और फिर उसे गुरु के समक्ष निष्कपट भाव से यथावत् रूप में निवेदन करना तो और भी बड़ी बात है । आत्मशोधन की आन्तरिक कामना रखने वाले साहसी वीर पुरुष ही ऐसा कर सकते हैं। विशिष्ट शब्दों का स्पष्टीकरण
'अभिहया' - इसका संस्कृत रूप 'अभिहताः' बनता है, जिसका अर्थ सम्मुख आते हुये को रोका हो। अर्थात् सामने आते प्राणियों को रोक कर उनकी स्वतंत्र गति में बाधा डाली हो।
'वत्तिया' - (वर्तिताः) अर्थात् धूल आदि से ढंके हों।
'लेसिया' - का अर्थ है जीवों को भूमि पर मसलना और संघट्टिया का अर्थ है जीवों को स्पर्श कर पीड़ित करना।
'उत्तिंग' -- का अर्थ है चींटियों का नाल अथवा चींटियों का बिल किया गया है । आचार्य हरिभद्र ने इनका अर्थ 'गर्दभ' की आकृति का जीव विशेष भी किया है, - उत्तिंगा गर्दभाकृतयोजीवाः, कीटिकानगराणि वा। आचार्य जिनदास महत्तर के उल्लेख से मालूम होता है यह भूमि में गड्ढ़ा करने वाला जीव है । 'उत्तिंगा नाम गद्दभाकिती जीवा भूमिए खड्डयं करेंति'- आवश्यकचूर्णि। 'दग' - सचित्त जल । 'मट्टी' - सचित्त पृथ्वी। 'ठाणाओ ठाणं संकामिया' - एक स्थान से दूसरे स्थान पर धकेला हो। 'ववरोविया' - घात किया हो। आगारसूत्र
तस्स उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं,
अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए,
सुहुमेहिं अंग-संचालेहि, सुहुमेहिं खेल-संचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठि-संचालेहिं, एवमाइएहिं आगारेहि, अभग्गो अविराहिओ, हुज मे काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि,