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प्रथम अध्ययन : सामायिक ]
प्रवृत्ति। उसके तीन रूप हैं - (१) स्वयं करना , (२) दूसरे से कराना और (३) अनुमोदन करना। योग का अर्थ है मन, वचन और शरीर।
सर्वश्रेष्ठ त्याग तीनों करणों और तीनों योगों से होता है । मुनि की सामायिक तीन करण तीन योग से होती है अत: सर्वोत्कृष्ट त्याग मुनि का माना गया है । गृहस्थ की सामायिक दो करण तीन योग से होती है । सामायिक पाठ का उच्चारण करते समय यदि कोई गृहस्थ श्रावक स्वयं सामायिक व्रत ग्रहण कर रहा है अथवा साधु उसे व्रत ग्रहण करवा रहा है तो 'दुविहं तिविहेणं' पाठ बोला जायेगा और 'जावजीवाए' के स्थान पर 'जावनियम' कहा जाएगा।
जैनधर्म में पतन के दो कारण माने गये हैं – योग और कषाय । योग का अर्थ है - मन, वचन और काया की हलचल । कषाय अर्थात् क्रोध, मान, माया और लोभ । ये चारों आत्मा की वैषम्यपूर्ण अवस्थाएँ हैं। क्रोध उस अवस्था का नाम है , जब हम दूसरे को घृणा या द्वेष की दृष्टि से देखते हैं और हानि पहुँचाना चाहते हैं । मान की अवस्था में द्वेष भावना न्यून होने पर भी उस रूप में भेदबुद्धि रहती है, हम स्वयं को ऊँचा मानते हैं और दूसरे को नीचा, स्वयं को बड़ा और दूसरे को छोटा, अपने को धर्मात्मा एवं दूसरे को पापी, अधम मानते हैं । माया का अर्थ है स्वार्थ को प्रच्छन्न-रूप से या कपट के द्वारा पूर्ण करने की भावना । लोभ अर्थात् अधिक लाभ की इच्छा। लोभावस्था में स्वयं के स्वार्थ को जितना महत्त्व दिया जाता है , उतना दूसरे के स्वार्थ को नहीं। सामायिक इन्हीं अशुभ योगों और कषायों से ऊपर उठने की साधना है।
___ सामायिक पूर्ण करते समय गृहस्थ संभावित भूलों का चिन्तन करता है, जिन्हें जैन परिभाषा में 'अतिचार' कहते हैं । वे अतिचार पाँच प्रकार के हैं - १. मनोदुष्प्रणिधान, २. वचोदुष्प्रणिधान, ३. कायदुष्प्रणिधान, ४.स्मृत्यन्तर्धान, ५. अनवस्थिता। प्रणिधान का अर्थ है - विनियोग, जिसे अंग्रेजी में Investment कहा जाता है। दुष्प्रणिधान का अर्थ है - गलत विनियोग (wrong Investment) । मन, वचन और काया प्रत्येक साधक की बहुमूल्य सम्पत्ति है । स्मृत्यन्तर्धान का अर्थ है इस बात को भूल जाना कि मैं सामायिक में हूँ और व्यर्थ की बातों में लगना । साधक को सदा जागरूक रहना चाहिये । अनवस्थितता का अर्थ है - चंचलता अथवा अन्यमनस्कता। जितने समय के लिये व्रत लिया है, उसे स्थिरता के साथ पूरा करना चाहिये। मंगलसूत्र
चत्तारि मंगलं - अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं,