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भौतिकवाद की आंधी में मानव बहिर्मुखी होता चला जा रहा है। वह अपने आपको भूलकर पर पदार्थों को प्राप्त करने के लिये ललक रहा है। और उसके लिये अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार को अपना रहा है, जिससे वह स्वयं अशान्त है, परिवार, समाज और राष्ट्र में सर्वत्र अशान्ति की ज्वाला धधक रही है। उससे मानव व्यथित है, समाज परेशान है और राष्ट्र चिन्तित है। यह प्रगति नहीं, उसके नाम पर पनपने वाला भ्रम है। आज आवश्यकता है, जो अतिक्रमण हुआ है उससे पुनः स्वभाव की ओर लौटने की। आवश्यकसूत्र साधक को परभाव से हटाकर निजभाव में लाने का संदेश प्रदान करता है। उस सन्देश को हम जीवन में उतारकर अपने को पावन बनायें, यही आन्तरिक कामना !
- देवेन्द्रमुनि शास्त्री
जैन स्थानक
वीरनगर, दिल्ली-७
१८-७-८५
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