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निभट्ट, माणिक्यशेखर, कुलप्रभ, राजवल्लभ आदि ने आवश्यकसूत्र पर वृत्तियों का निर्माण किया है। इनके अतिरिक्त विक्रम संवत् ११२२ में नमि साधु ने संवत् १२२२ में श्री चन्द्रसूरि ने, संवत् १४४० में श्री ज्ञानसागर ने, संवत् १५०० में धीरसुन्दर ने, संवत् १५४० में शुभवर्द्धनगिरि ने संवत् १६९७ में हितरुचि ने तथा सन् १९५८ में पूज्य घासीलाल जी महाराज ने भी आवश्यकसूत्र पर वृत्ति का निर्माण कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। टीकायुग समाप्त होने के पश्चात् जनसाधारण के लिये आगमों के शब्दार्थ करने वाली संक्षिप्त टीकाएं बनाई गई जो स्तवक या टब्वा के नाम से विश्रुत हैं और वे लोकभाषाओं में सरल और सुबोध शैली में लिखी गईं। धर्मसिंह मुनि ने १८वीं शताब्दी में २७ आगमों पर बालावबोध टब्वे लिखे थे, उनके ब्वे मूलस्पर्शी अर्थ को स्पष्ट करने वाले हैं। उन्होंने आवश्यक पर भी टब्वा लिखा था। टब्वों के पश्चात् अनुवाद युग का प्रारम्भ हुआ। मुख्य रूप से आगम साहित्य का अनुवाद तीन भाषाओं में उपलब्ध है- अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी । आवश्यकसूत्र का अंग्रेजी अनुवाद नहीं हुआ है, गुजराती और हिन्दी में ही अनुवाद हुआ है। शोध प्रधान युगं में आवश्यकसूत्र पर पंडित सुखलालजी सिंघवी तथा उपाध्याय अमरमुनिजी प्रभृति विज्ञों ने विषय का विश्लेषण करने के लिये हिन्दी में शोध निबन्ध भी प्रकाशित किये हैं ।
आधुनिक युग मुद्रण का युग है। इस युग में विराट् साहित्य मुद्रित हो कर जनता जनार्दन के कर-कमलों में पहुँचा है। आगमों के प्रकाशन का कार्य विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर हुआ है। आवश्यकसूत्र और उसका व्याख्या साहित्य इस प्रकार प्रकाशित हुआ है
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सन् १९२८ में आगमोदय समिति बम्बई ने आवश्यकसूत्र भद्रबाहु नियुक्ति और मलयगिरि वृत्ति के साथ प्रथम भाग प्रकाशित किया। उसका द्वितीय भाग सन् १९३२ में तथा तृतीय भाग सन् १९३६ में देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार सूरत से प्रकाशित हुए।
सन् १९१६-१७ में आवश्यक भद्रबाहुनिर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्ति के साथ आगमोदय समिति बम्बई से प्रकाशित
हुई ।
सन् १९२० में आवश्यकसूत्र मलधारी हेमचन्द्र विहित प्रदेशाव्याख्या के साथ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार बम्बई ने प्रकाशित किया।
सन् १९३९ और १९४१ में भद्रबाहु कृतआवश्यकनिर्युक्ति की माणिक्यशेखर विरचित दीपिका विजयदानसूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला, सूरत से प्रकाशित हुई ।
सन् १९२८ और सन् १९२९ में आवश्यकचूर्णि जिनदास रचित क्रमशः पूर्व भाग और उत्तर भाग प्रकाशित हुआ है वीर संवत् २४२७ से २४४१ में विशेषावश्यकभाष्य शिष्यहिताख्य बृहद्वृत्ति, मलधारी आचार्य हेमचन्द्र की टीका सहित, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला बनारस से प्रकाशित हुआ। सन् १९२३ में 'विशेषावश्यकगाथानामकारदिक्रमः तथा विशेषावश्यक विषयाणामनुक्रमः' आगमोदय समिति बम्बई से प्रकाशित हुए।
सन् १९६६ में विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति सहित लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर से तीन भागों में प्रकाशित हुआ है।
सन् १९३६ और १९३७ में कोट्याचार्य कृत विशेषावश्यकभाष्य विवरण का प्रकाशन ऋषभदेव जी केसरीमल जी प्रचारक संस्था रतलाम से हुआ। सन् १९३६ में ही आवश्यक नमिसार वृत्ति विजयदानसूरीश्वर ग्रन्थमाला बम्बई से प्रकाशित हुई ।
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