________________
दोषविशुद्धि के लिये जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह कायोत्सर्ग दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक रूप से पाँच प्रकार का है।
___ षड़ावश्यक में जो कायोत्सर्ग है, उसमें चतुर्विंशतिस्तव का ध्यान किया जाता है। चतुर्विंशतिस्तव में सात श्लोक और अट्ठाईस चरण हैं। एक उच्छवास में एक चरण का ध्यान किया जाता है। एक चतुर्विंशतिस्तव का ध्यान पच्चीस उच्छ्वासों में सम्पन्न होता है। प्रथम श्वास लेते समय मन में 'लोगस्स उज्जोयगरे' कहा जायेगा और सांस को छोड़ते समय 'धम्मतित्थयरे जिणे' कहा जायेगा। द्वितीय सांस लेते समय 'अरिहंते कित्तइस्सं' और छोड़ते समय 'चउवीसं पि केवली' कहा जायेगा। इस प्रकार चतुर्विशतिस्तव का कायोत्सर्ग होता है।
प्रवचनसारोद्धार में और विजयोदयावृत्ति में कायोत्सर्ग का ध्येय, परिमाण और कालमान इस प्रकार दिया गया
प्रवचनसारोद्धार
चतुर्विंशतिस्तव
श्लोक
चरण
उच्छ्वास
१. दैवसिक
२. रात्रिक
३. पाक्षिक ४. चातुर्मासिक ५. सांवत्सरिक
१. योगशास्त्र, ३ २. चत्तारि दो दुवालस, वीस चत्ता य हुंति उज्जोया।
देवसिय राय पक्खिय, चाउम्मासे य वरिसे य॥ पणवीस अद्धतेरस, सलोग पन्नतरी य बोद्धव्या। सयमेगं पणवीसं, बे बावण्णा य बरिसंमि॥ सायं सयं गोसद्ध तिन्नेव सया हवेंति पक्खमि।
पंच य चाउम्मासे, वरिसे अट्ठोत्तर सहस्सा। ३. सायाह्ने उच्छ्वासशतकं प्रत्युषसि पंचाशत, पक्षे त्रिशतानि।
चतुर्षमासेसु चतु:शतानि, पंचशतानि, संवत्सरे उच्छ्वासानाम्॥ अष्टौ प्रतिक्रमे योगभक्तौ तौ द्वावुदाहतौ।
- मूलाराधना-विजयोदयावृत्ति, १,११६