Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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प्रथम श्रुतस्कन्ध : उपोद्घात
'भगवन् ! सूत्रकृत (सूचाकृत) क्या है ? सूत्रकृत में लोक का स्वरूप सूचित किया गया है, अलोक का स्वरूप सूचित किया गया है, लोकालोक का स्वरूप सूचित किया गया है। इसमें जीव का स्वरूप सूचित किया गया है, अजीव का स्वरूप भी सूचित किया गया है, जीवाजीव का भी । स्वसमय सूचित किया गया है, परसमय भी सूचित किया गया है, स्व-पर-समय भी सूचित किया गया है । सूत्रकृतांग में १८० क्रियावादियों का, ८४ अक्रियावादियों का, ६७ अज्ञानवादियों का एवं ३२ विनयवादियों का, यों ३६३ पाषंडियों के सिद्धान्त का खण्डन करके स्वसिद्धान्त की स्थापना की गई है।
___ इस प्रकार सूत्रकृतांग सूत्र की रचना बहुत ही महत्वपूर्ण घड़ियों में हुई है, गणधरों ने भगवान् महावीर के उपदेश को यथातथ्यरूप में अद्धमागधी (प्राकृत) भाषा में निबद्ध करके सर्वसाधारण जिज्ञासुओं के सामने प्रस्तुत करके महान उपकार किया है।
सूत्रकृतांगसूत्र पर श्री भद्रबाहु स्वामी ने नियुक्ति लिखी है। इस पर चणि भी है। श्री शीलांकाचार्य ने बाहरिगणि की सहायता से इस शास्त्र पर टीका लिखी है, जो आज विशेष प्रचलित है। मुनि हर्षकुल एवं साधुरंग ने इस पर दीपिकाओं की रचना की है। हर्मन जेकोबी ने 'सेक्रेड बुक्स ऑव द ईस्ट' के ४५वें भाग में इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इस प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र प्राचीन-अर्वाचीन कई आचार्यों एवं विशिष्ट श्रुतधर मुनियों के चिन्तन से समृद्ध है। भाषा और विषय निरूपण की शैली को देखते हुए इस सूत्र की गणना भी प्राचीनतम आगमों में की जाती है।
___ शास्त्र की उपादेयता के लिये चार अनुबंध ___ अंगसूत्रों का प्ररूपण या अर्थ-कथन सीधे श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा किया गया है। बाद में गणधरों ने इन्हें शब्दों में संकलित-ग्रथित किया है। इसलिये इस शास्त्र की महत्ता और उपयोगिता में कोई सन्देह नहीं रह जाता । नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहुस्वामी ने इस सूत्रकृतांगसूत्र को 'भगवान्' कहा है। इसका कारण यह है कि सर्वज्ञ श्रमण भगवान् महावीर द्वारा साक्षादुपदिष्ट होने से यह भगवान् का अंग है। चूंकि 'ज्ञान' को ही तो भगवान् का अंग कहा जा सकता है तथा भगवान् का अंगभूत वह सूत्ररूप ज्ञान महान् अर्थ का बोधक होने से भगवान् के तुल्य माना जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं। इसके अतिरिक्त जो शास्त्र अनेक बंधनों में जकड़ी हुई आत्माओं को देखकर परम करुणा और हितबुद्धि से प्रेरित होकर स्वयं सर्वज्ञ तीर्थंकर प्रभु के मुखारविन्द से निःसृत बोध-सूत्र के रूप में प्राप्त है, और मन्धनों के कारण एवं निवारणोपाय बताकर मोक्षपथ की ओर प्रत्येक मुमुक्षु एवं
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