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{ xxxii} उत्साह देखने को मिलता है। वैसा उत्साह चातुर्मासिक पर्व, पाक्षिक पर्व में भी बनना चाहिए। दैवसिक, रात्रिक प्रतिक्रमण करने वाले भी अपने जीवन की व धर्मस्थान की शोभा बढ़ावें।
प्रत्येक माता-पिता का कर्त्तव्य है कि वह अपनी संतान को सुंदर संस्कार देकर प्रतिक्रमण अवश्य याद करावें। ताकि इस भौतिक चकाचौंध में, बाह्य विषमता के वातावरण में उनका जीवन सुरक्षित रह सके। आज के बच्चे अधिक बौद्धिक, तार्किक क्षमता वाले हैं उन्हें अर्थ, भावार्थ सहित प्रतिक्रमण कंठस्थ करावें।
इस तरह प्रत्येक आत्मा द्रव्य और भाव आवश्यक (प्रतिक्रमण) के आराधक बनकर अनंत आनंद के अधिकारी बनें। इन्हीं मंगल भावनाओं के साथ......।
(आचार्य भगवंत श्री हीराचन्द्रजी म.सा. के प्रवचनों एवं विचारों के आधार पर)
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