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[आवश्यक सूत्र केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद का वर्णन इस प्रकार आया है-तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ (सूत्र 286)। तब वे भगवान अर्हत् जिन केवली होंगे। उनके प्रदेशी राजा के तीर्थङ्कर नामकर्म का बंधन का वर्णन नहीं होने पर भी उन्हें दृढ़ प्रतिज्ञ के भव में अरहा कहा गया। अन्य जीवों के अगले भव के लिए दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के चरित की भोलावण भी मिलती है। सूत्र संख्या 241 तथा 286 से सामान्य केवली व अरिहंत का एकत्व अपने
आप सिद्ध हो जाता है। 3. अनुयोगद्वार सूत्र में क्षायिक भाव का स्वरूप सूत्र संख्या-244 में बतलाया है। क्षयनिष्पन्न
क्षायिक भाव अनेक प्रकार का कहा गया है, जैसे-उत्पन्न ज्ञान-दर्शन धारी, अर्हत् जिन,
केवली। क्षायिक भाव से निष्पन्न भावों के समान अर्हत् दशा' भी सामान्य केवली में रहती है। 4. भगवती सूत्र शतक 12 उद्देशक 1 में वर्णित तीन प्रकार की जागरणाओं में पहली बुद्ध
जागरिका है। यह जागरिका सभी सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तीर्थङ्कर एवं सामान्य केवलियों में समान रूप से मानी गयी है। सामान्य साधुओं में अबुद्ध जागरिका मानी है। यदि सामान्य केवलियों में पाँचवें पद में लेते हैं तो उनमें भी अबुद्ध जागरिका माननी पड़ेगी, जो कि शास्त्रकारों को
इष्ट नहीं है। 5. भगवती सूत्र शतक 1 उद्देशक 4 में स्पष्ट उल्लेख है कि बीते अनंत शाश्वत काल में,
वर्तमान शाश्वत काल में और अनंत शाश्वत भविष्यत् काल में जिन अंतकरों ने, चरम शरीरी वालों ने सब दुःखों का नाश किया है, करते हैं, करेंगे, वे सभी उत्पन्न ज्ञानदर्शनधारी, अरिहंत, जिन और केवली होकर सिद्ध हुए हैं, होते हैं और होंगे। भगवती सूत्र शतक 25 उद्देशक 6 में निर्ग्रन्थों का वर्णन किया गया है। उसमें स्नातक के भेदों में सामान्य केवली व तीर्थङ्कर दोनों को शामिल करके 36 द्वारों से विवेचन किया गया है। इन 36 द्वारों में तीर्थङ्कर व सामान्य केवली को एक समान मानते हुए उन्हें केवल-ज्ञान,
केवलदर्शन धारक, अरिहंत, जिन, केवली बतलाया गया है। 7. समर्थ समाधान भाग-2, प्रश्न संख्या-1132, पृष्ठ संख्या 243 पर उल्लेख है कि
केवली को वंदना प्रथम पद से होती है। 8. जैनेन्द्र सिद्धांत कोष भाग-1, पृष्ठ संख्या-140 पर अर्हन्त के दो भेद किये हैं-1.
तीर्थङ्कर, 2. सामान्य अरिहंत। इसी के पृष्ठ संख्या 141 पर अहँत के 7 भेद मिलते हैं-1. पाँच कल्याणक वाले, 2. तीन कल्याणक वाले, 3. दो कल्याणक वाले, 4. सातिशय केवली, 5. सामान्य केवली, 6. उत्सर्ग केवली, 7. अंतकृत केवली।