Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 248
________________ { 212 [आवश्यक सूत्र ऊपर बतलाये गए अनेक कारणों से आगमसंगत नहीं लगता। अत: किसी समय में किन्हीं के द्वारा श्रमणसूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण में जोड़ कर परम्परा चला दी गई हो तथा किन्हीं ने अनुकरणशीलता की वृत्ति के अनुरूप उस परम्परा का अनुकरण कर भी लिया हो तो आगमिक आशय को स्पष्टतया जान लेने के पश्चात् उसे यथार्थ को स्वीकारते हुए श्रमण सूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण से हटा देना चाहिए। यदि परम्परा को ही सत्य माना जाय तो किसकी परम्परा को सत्य माना जाय। अनेक परम्पराओं के श्रावक बिना श्रमण सूत्र का प्रतिक्रमण करते हैं यथा-पंजाब के पूज्य अमरसिंहजी म.सा. की पंजाबी संतों की परम्परा, रत्नवंश की परम्परा, पूज्य जयमलजी म.सा. की परम्परा, नानक वंश की परम्परा, मेवाड़ी पूज्य अम्बालाल जी म.सा. की परम्परा, उपाध्याय पुष्करमुनि जी म.सा., मरुधरकेशरी मिश्रीमल जी म.सा. की परम्परा, कोटा सम्प्रदाय के खद्दरधारी गणेशीलालजी म.सा. की परम्परा, पूज्य श्री हुक्मीचन्द जी म.सा. की परम्परा, गुजराती दरियापुरी सम्प्रदाय इत्यादि परम्पराओं के श्रावकों द्वारा बिना श्रमण सत्र का प्रतिक्रमण किया जाता रहा है। ऐसी स्थिति में परम्परा सत्य को प्रमाणित कैसे कर पाएगी? अतः आगमों का प्रबल आधार सन्मुख रखते हुए श्रावक प्रतिक्रमण में श्रावक सूत्र का ही उच्चारण किया जाना चाहिए, श्रमण सूत्र का नहीं। प्रश्न 183. 125 अतिचारों में से निम्नांकित कार्यों में मुख्य रूप से कौन सा अतिचार लगता है और क्यों? 1. बिना पूँजे रात्रि में शयन करना 2. बड़ों की अविनय आशातना करना 3. दीक्षार्थी के जुलूस को देखना 4. ताजमहल देखने जाना 5. निर्धारित समय पर निर्धारित घर में चाय लेने जाना 6. मनपसन्द वस्तु स्वाद लेकर खाना 7. चारों प्रहर में स्वाध्याय न करना 8. अयतना से बैठना 9. शीतल वायु के स्पर्श में सुख अनुभव करना। उत्तर सामान्य रूप से कथन- ज्ञान के 14, दर्शन के 5, संलेखना के 5, पाँच महाव्रतों की भावना के 25, रात्रि भोजन के 2, ईर्या समिति के 4, भाषा समिति के 2, एषणा समिति के 47, आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति के 2, उच्चार-प्रस्रवण-खेल-सिंघाण-जल्ल परिष्ठापनिका समिति के 10, मनोगुप्ति के 3, वचन गुप्ति के 3, काय गुप्ति के 3 (संरंभ, समारंभ और आरंभ तीनों में) कुल 125। 1. बिना पूँजे रात्रि में शयन करना-अतिचार संख्या 24वाँ (100-101), निक्षेपणा समिति (118-126) काय गुप्ति आदान भण्ड-मत्त निक्खेवणा समिई भावणा' संयमी

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