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[ आवश्यक सूत्र
आदि प्रसंग पर भी 1 ही प्रतिक्रमण करे 2 नहीं सम्वत् 2009 सादड़ी मारवाड़ में बृहत् साधु सम्मलेन हुआ उसमें भी अनेक सम्पद्राय के साधुओं ने मिलकर 1 ही प्रतिक्रमणका लिया। यह भी बात विचारणीय है कि जो 2 प्रतिक्रमण करते हैं वे 1 प्रतिक्रमण में कितने आवश्यक मानते हैं? यदि 6 मानते हैं तो 2 प्रतिक्रमण 12 आवश्यक होने चाहिये लेकिन जहाँ तक सुनने में आता है वे लगभग 10 आवश्यक ही करते हैं तो उनके द्वारा यह कहना कि हम 2 प्रतिक्रमण करते हैं यह कहाँ तक सही माना जाए।
प्रश्न 191. जब कुछ समय अधिक हो ही जाता है तो फिर 30 मिनिट और अधिक होने में क्या
नुकसान है ?
'काले कालं समायरे' के आगम कथन का उल्लंघन होता है। साथ ही उत्तराध्ययन के 26वें अध्याय की टीका, यति दिनचर्या आदि से स्पष्ट है कि सूर्य की कोर खंडित होने के साथ प्रतिक्रमण (आवश्यक) की आज्ञा ले । सामान्य दिन इस विधान का पालन किया जाता है। विशिष्ट पर्व चौमासी और संवत्सरी को तो और अधिक जागृति से पालना चाहिए। पर उस दिन दो प्रतिक्रमण करने वालों का यह विधान कितना निभ पाता है, समीक्षा योग्य है ।
उत्तर
प्रश्न 192. तो क्या दो प्रतिक्रमण करना आगम विरुद्ध है?
उत्तर
पूर्वाचार्यों ने अनेक विवादास्पद स्थलों पर 'तत्त्वं तु केवलिनो विदन्ति' करके अपना बच किया है। हम भी किसी भी विवाद में नहीं उलझें, परंपरा से जो गुरु ने फरमा दिया उसे श्रद्धा से स्वीकार कर उस अनुरूप प्रतिक्रमण आदि सम्पन्न करना चाहिए। महत्ता भाव की है अतः कषायों से बचते हुए गुरु आज्ञा से धर्म आराधना में तत्पर रहें।
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प्रश्न 193. पर आपका कोई ना कोई दृष्टिकोण तो होगा ही?
उत्तर
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हाँ, वो तो रखना ही होगा। गुरु भगवन्तों की कृपा से, आगम वर्णन से कैशी गौतम संवाद । कालास्यवेषिक अणगार आदि पार्श्वनाथ भगवान् के अनेक साधु, भगवान् महावीर के शासन में आए, उन्होंने 5 महाव्रत के साथ प्रतिक्रमण वाले धर्म को स्वीकार किया, ऐसा आगम स्पष्ट कर रहा है। अर्थात् 24वें तीर्थङ्कर के शासन की व्यवस्था मध्यवर्ती तीर्थङ्करों के शासन से स्पष्ट अलग है, अतः मध्यवर्ती का कथानक यहाँ वर्तमान में लागू नहीं किया जा सकता । शैलकजी को पंथकजी ने प्रतिदिन भी प्रमाद परिहरण के लिए प्रतिक्रमण कराया होगा, पर फिर भी वे सफल नहीं हो पाए । अतः चौमासी को उन्होंने विशेष प्रयास किया और उसमें सफलता मिल गई । इसी प्रकार विशेष दोष पर साधक अलग से आलोचन, प्रतिक्रमण आज भी करता है। पर सामान्य जीवनचर्या में, साधना में एक प्रतिक्रमण की बात उचित प्रतीत होती है, अतः हम चौमासी व संवत्सरी को भी एक ही प्रतिक्रमण करते हैं।