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[ आवश्यक सूत्र
देने वाला व्यक्ति मन में अहोभाव लाता है कि देखो यह शरीर शुद्धि के लिए अग्रसर हो रहा है, उसी प्रकार आत्मिक स्नान कर अपने दोषों का निकन्दन करते हुए गुरु भगवन्तों को देखकर शिष्य के मन में अहोभाव जागृत होता है, और वह शिष्य उनके गुणों के विकास को देखकर गद्गद् बना हुआ गुणवत्प्रतिपत्ति करता है अर्थात् उनके प्रति विनयभाव करता है । 4. जैसेकिसी ने स्नान किया और स्नान करने के बाद कभी भूलवश कीचड़ आदि अशुचि लग गई तो उस अशुचि स्थान की वह व्यक्ति शुद्ध जल से शुद्धि करता है, वैसे ही आत्मिक स्नान करने वाला साधक जो कि व्रतों को अंगीकार करके व्रतों की निर्दोष पालना में आगे बढ़ रहा है, किन्तु कभी प्रमादवश कोई स्खलना हो जाने पर उस स्खलित दोष की निन्दना कर उस दोष से पीछे हटकर पुनः निर्दोष आराधना में आगे बढ़ता है। 5. जैसे स्नान करते किसी व्यक्ति के शरीर में कोई व्रण (घाव) लगा हुआ है तो वह मलहम आदि दवा लगाकर उसका उपचार करता है, उसी प्रकार आत्मिक स्नानकर्ता के व्रतों में दोष रूप व्रण (घाव) होने पर वह प्रायश्चित्त रूप औषध का प्रयोगकर उस भाव व्रण की चिकित्सा करता है । 6. शारीरिक स्नान करने वाला व्यक्ति जैसे स्नान कर लेने के बाद तेल, इत्र आदि सुगन्धित पदार्थ लगाकर विशेष रूप से शरीर को सजाता है, वैसे ही भाव व्रण आदि को दूर कर लेने के बाद आत्मिक स्नान करने वाला साधक छठे आवश्यक में कुछ प्रत्याख्यान अंगीकार करके विशेष रूप से गुणों को धारण करके अपने संयमी - जीवन की आन्तरिक तेजस्विता में अभिवृद्धि करता है ।
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2. आवश्यक आत्मिक शल्यक्रिया है - 1. जैसे किसी व्यक्ति के किसी व्यसन आदि बाह्य निमित्त के कारण तथा उपादान रूप आभ्यन्तर कारण से कैंसर की गाँठ आदि के रूप में कोई बड़ा रोग हो गया। वह रोगी व्यक्ति विचार करता है कि इस रोग को मुझे आगे नहीं बढ़ाना है। उसी तरह कर्म के कैंसर रोग से पीड़ित व्यक्ति मन में विचार करता है कि अब मैं रोग के कारण हिंसा, झूठ आदि किसी भी सावद्य व्यापार का सेवन नहीं करूँगा । 2. वह रोगी व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ लोगों को देखकर विचार करता है कि ये लोग धन्य हैं, जिन्होंने इस भव, परभव में शुभ कर्म किये हैं और जीवन में कोई कुव्यसन का सेवन नहीं किया है, जो अभी साता से, शान्ति से जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उसी तरह आत्म शल्यक्रिया का साधक पूर्ण आत्मिक स्वस्थता को प्राप्त अरिहन्त भगवन्तों को देखकर, उनके गुणों से प्रभावित होकर, उनके गुणों की स्तुति, उनके गुणों का उत्कीर्तन करता है। 3. कोई व्यक्ति अभी भी जीवन में कोई व्यसन नहीं रखता है, किसी तरह के अशुभ कर्म करके असातावेदनीय का बंध नहीं करता है, अपने स्वास्थ्य का पूरा