________________ { 256 [आवश्यक सूत्र मैंने जो-जो पाप मन से संकल्प द्वारा बाँधे हों, वाणी से पापमूलक वचन बोले हों और शरीर से पापाचरण किया हो वह सब पाप मेरे लिए मिथ्या हो। अन्तिम परमेष्ठी मंगल णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व-साहूणं / / एसो पंच-णमुक्कारो, सव्व-पावप्पणासणो / मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ मं हवइ मंगलं / / अरिहंतो को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो, लोक के सब साधुओं को नमस्कार हो। यह पाँच पदों को किया हुआ नमस्कार सब पापों का सर्वथा नाश करने वाला है और संसार के सभी मंगलों में प्रथम अर्थात् भाव रूप मुख्य मंगल है। // संस्तारक पौरुषी सूत्र समाप्त / / 000