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परिशिष्ट-4]
233} व्याख्या-समणोऽहं संजय-विरय"मायामोसविवज्जिओ । यह सूत्र आत्मसमुत्कीर्तनपरक सूत्र है। “मैं श्रमण हूँ, संयत-विरत हूँ, पापकर्म का प्रत्याख्याता हूँ, अनिदान हूँ, दृष्टिसम्पन्न हूँ, मायामृषा विवर्जित हूँ- यह बहुत उदात्त, ओजस्वी भावों से भरा हुआ अन्तर्नाद है। यह अपने सदाचार के प्रति स्वाभिमान पूर्ण गंभीर वाणी है। संभव है स्वाभिमान पूरित शब्द सुनने में किसी को अहंकार पूरित भी लगे। आत्मिक दुर्बलता का निराकरण करने के लिए साधक को ऐसा स्वाभिमान सदा सर्वत्र ग्राह्य है, आदरणीय है। उच्च संकल्प भूमि पर पहुँचा हुआ साधक ही यह विचार कर सकता है कि मैं इतना ऊँचा एक महान् साधक हूँ, फिर भला अकुशल पापकर्म का
आचरण कैसे कर सकता हैं। सती राजीमती ने भी ऐसे ही स्वाभिमान पूरित शब्दों से रथनेमि को चेताया था “अहं च भोगरायस्स... संजमं निहुओ चर ।।" (दशवैकालिक 2/8) जबकि साधक को संयमोपरान्त अपने कुल-परिवार को याद नहीं करना चाहिए। यह आउरस्सरणाणि' अनाचीर्ण है, फिर भी राजीमती की इस स्वाभिमान पर्ण गंभीर वाणी को आगमकारों ने सभाषित जाना और रथनेमि के साधक भाव जागृत हुए। यह तो वह आत्माभिमान है जो साधक को पापाचरण से बचाता है, यह तो वह आत्मसमुत्कीर्तन है जो साधक को धर्माचरण के लिए प्रखर स्फूर्ति, अचंचल ज्ञान
चेतना देता है तथा अन्तर्हृदय को वीररस से आप्लावित कर देता है। कीचड़ में फँसा हाथी कई रस्सियों से भी बाहर नहीं निकल पाता, पर युद्ध की भेरी, वीररस से परिपूर्ण स्वरों को सुन ऐसा आत्मसामर्थ्य जगाता है कि क्षण भर में दल-दल से बाहर निकल आता है। (6) प्रभो! मैं तुम्हारा अतीतकाल हूँ, तुम मेरे भविष्यकाल हो, वर्तमान में मैं तुम्हारा अनुभव करूँ, यही भक्ति है। व्याख्या-लोगस्स, उत्कीर्तन सूत्र-जैन दर्शन की यह विशेषता है कि इसमें भक्त और भगवान् का वर्ग अलग-अलग नहीं माना है। यहाँ तो फरमाया है कि हर साधक दोषों को देख उन्हें दूर करने का पुरुषार्थ करे तो सिद्ध हो सकता है। आत्मा, परमात्मा पद पा सकती है, दोषी, निर्दोष बन सकता है, इंसान ही ईश्वर बन सकता है। प्रथम आवश्यक में साधक निज दोषों को देखता है। कोई-कोई साधक अपने प्रति घृणा, हीनता की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। उस हीनता की ग्रंथि का नाश हो, इसलिए उत्कीर्तन करते हैं। उन महापुरुषों की स्तुति जो हम जैसे जीवन से ऊपर उठे, पूर्णता में पूर्ण लीन हो गये। आत्मविश्वास को जगा, लक्ष्य की सही पहचान करने के लिए, लक्ष्य को प्राप्त करने वाले साध्य