Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 278
________________ (242 प्रश्न 219. टिप्पणी लिखिए - 1. अठारह हजार शीलांग रथ 2. यथाजात मुद्रा 3. यापनीय 4. श्रमण 5. अवग्रह 6. निर्ग्रन्थ प्रवचन । (1) अठारह हजार शीलांग रथ वंदे ॥ जेन करेंति मणसा, निज्जियाहार - सन्ना - सोइंदिए । पुढवीकायारंभे, खंतिजुआ ते मुणी जोगे करणे सण्णा, इंदिय भोम्माइ समणधम्मे य । अण्णोणेहि अब्भत्था, अट्ठारह सीलसहस्साई ।। जे नो जो माणु कारवेंति मोयंति 6000 कायसा 2000 मेहुणसन्ना परिग्गहसन्ना उत्तर [ आवश्यक सूत्र अस्वाध्याय में तथा चन्द्रग्रहणादि 34 ( 32 ) अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने को 'असज्झाइए सज्झायं' अतिचार कहते हैं। 'अकाले कओ सज्झाओ' में केवल काल की अस्वाध्याय है, लेकिन 'असज्झाइए सज्झायं' में काल के साथ-साथ अन्य आकाश संबंधी, औदारिक संबंधी कुल 34 (32) प्रकार के अस्वाध्याय का समावेश हो जाता है। इसके दो भेद हैं-1. आत्मसमुत्थस्वयं के रुधिरादि से । 2. परसमुत्थ-दूसरों से होने वाले को परसमुत्थ कहते हैं, जबकि 'अक कओ... का कोई अवान्तरभेद नहीं है । जे नो करेंति 6000 6000 मणसा वयसा 2000 2000 आहारसन्ना भयसन्ना 500 500 श्रोत्रेन्द्रिय 100 पृथ्वी 10 क्षान्ति 10 यति धर्म x 10 आरंभ = 100 भेद पाँचों इंद्रियों के भी प्रत्येक के 100 = 100 x 5 = 500 ये प्रत्येक संज्ञा 500 भेद = 500 x 4 = 2000 2000 x 3 योग = 6000 6000 x 3 करण = 18000 शीलांग रथ धारा 100 तेउ 500 500 500 चक्षुरिन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय रसनेन्द्रिय स्पर्शनेन्द्रिय 100 100 अप् वायु 10 10 10 10 10 10 10 10 10 मुक्ति आर्जव मार्दव लाघव सत्य संयम तप ब्रह्मचर्य अकिंचन इसको क्षमादि 10 गुणों से गुणा करने पर 10 गाथाएँ बनती है। फिर इनको पृथ्वीकाय आदि 10 असंयम (पाँच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अजीव) से गुणा करने पर 100 गाथाएँ बनती हैं। इनको श्रोत्रेन्द्रिय आदि 5 इन्द्रिय से गुणा करने पर 500 गाथाएँ बनती हैं। इनको 4 100 100 100 100 100 वनस्पति बेड तेह. चउ. पंचे. 100 अजीव

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