Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 262
________________ { 226 [आवश्यक सूत्र भात-पानी का विच्छेद किया हो, चोर की चुराई वस्तु ली हो, भण्ड कुचेष्टा की हो आदि कतिपय आचार अव्रती के जीवन को नैतिक बनने में सहकारी बनते हैं, जीवन में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करते हैं। आगम तो 9 वर्ष वाले को व्रत का अधिकार देता है, किन्तु 4 साल 5 साल आदि के बच्चे को सामायिक व्रत पच्चक्खाते हैं-उपवास भी कराते हैं, प्रतिक्रमण भी सिखाते हैं, उसके पीछे हेतु? उसके संस्कार पवित्र होते हैं। भगवती सूत्र शतक 7 उद्देशक 2 से ध्वनित होता है कि 5 अणुव्रत लिये बिना भी अणुव्रत और 4 शिक्षाव्रत की आराधना हो सकती है। भगवती सूत्र शतक 17 उद्देशक 2 में एक भी प्राणी के दण्ड को छोड़ने वाला एकान्त बाल नहीं कहा- अर्थात् श्रद्धाविवेक सहित सामायिक पच्चक्ख कर प्रतिक्रमण करने वाला एकान्त अव्रती नहीं। सभी देव व नारक अव्रती हैं-तिर्यंच में भी व्रत बिना प्रतिक्रमण का प्रसंग नहीं। बिना अन्य व्रत लिये प्रतिक्रमण के समय सही समझपूर्वक श्रद्धा से सामायिक करने वाला अव्रती नहीं, व्रताव्रती है तथा उसका प्रतिक्रमण स्वाध्याय सहित ज्ञान-दर्शन-चारित्राचारित्र व तप के अतिचारों की विशुद्धि कराने वाला है। अतः अव्रती अथवा अव्रतीप्रायः एक व्रतधारी को भी प्रतिक्रमण करना उपयोगी ही प्रतीत होता है। प्रश्न 213. प्रतिक्रमण के पाठ बोले बिना कोई अपनी भूल को स्वीकार कर उसमें सुधार का संकल्प ले तो क्या वह भी प्रतिक्रमण की श्रेणि में आता है? भगवतीसूत्र शतक 25, उद्देशक 7, औपपातिक सूत्र, स्थानांग सूत्र 10वाँ स्थान आदि में प्रायश्चित्त के 10 भेद कहे गये हैं। जीतकल्प आदि व्याख्या-साहित्य में विशद विवेचन में उपलब्ध होता है कि किस-किस के प्रायश्चित्त में क्या-क्या आता है? आलोचना के पश्चात् दूसरा प्रायश्चित्त प्रतिक्रमण बताया गया। 'जं संभरामि जं च न संभरामि' से साधक स्मृतविस्मृत भूल की निन्दा-गर्दा कर शुद्धि करता है । ज्ञाताधर्मकथा के प्रथम अध्ययन में मेघकुमार जी द्वारा भगवचरणों में नई दीक्षा, मृगावती जी द्वारा चन्दनबालाजी के उपालम्भ पर आत्मालोचन अथवा प्रसन्नचन्द्र राजर्षि द्वारा भीतरी युद्ध-औदयिक भाव से क्षायोपशमिक, क्षायिक भाव में लौटना भाव प्रतिक्रमण के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। अतः भूल स्वीकार कर, सुधार का संकल्प कर लेना आत्महितकारी है, भाव प्रतिक्रमण है और भूल ध्यान में आते ही साधक त्वरित शोधन कर लेता है। मध्यवर्ती 22 तीर्थङ्कर और महाविदेह क्षेत्र के ऋजु प्राज्ञ साधकों के लिये भाव प्रतिक्रमण की सजगता के कारण उभयकालीन भाव सहित पाठोच्चारण रूप प्रतिक्रमण अनिवार्य उत्तर

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