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प्रश्न 150. सिद्धों के 14 प्रकार कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर
उत्तर
प्रश्न 151. चौरासी लाख जीवयोनि के पाठ में 18,24,120 प्रकारे 'मिच्छामि दुक्कडं' दिया जाता है । ये प्रकार किस तरह से बनते हैं?
1
स्त्रीलिंग सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध, नपुंसकलिंग सिद्ध, स्वलिंग सिद्ध, अन्यलिंग सिद्ध, गृहस्थलिंग सिद्ध, जघन्य अवगाहना, मध्यम अवगाहना, उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध, ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक, अधोलोक से होने वाले सिद्ध, समुद्र में तथा जलाशय में होने वाले सिद्ध । इनका कथन उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्ययन की गाथा 50-51 में है।
उत्तर
I
जीव के 563 भेदों को अभिहया, वत्तिया आदि 10 विराधना से गुणा करने पर 5,630 भेद बनते हैं। अब ये या तो राग रूप या द्वेष रूप अतः इन दो से गुणा करने पर 11,260 भेद बने फिर इनको मन-वचन एवं काया इन तीन योगों से गुणा किया तो 33,780 भेद हुए पुनः तीन करण से गुणित करने पर 1,01,340 भेद बने। तीन काल से गुणा करने पर 3,04,020 भेद हुए। ये सब पंच परमेष्ठी और आत्मसाक्षी से होते हैं अतः 6 से गुणा करने पर 18,24,120 प्रकार बनते हैं । वस्तुतः जैन धर्म में अपने दोष-दर्शन का सूक्ष्मतम विवेचन प्रकट हुआ है। 563 (जीव के भेद ) x 10 (विराधना ) x 2 ( राग-द्वेष ) x 3 (योग) x 3 (करण) x 3 (काल) x 6 (साक्षी) = 18,24,120
प्रश्न 152. 84 लाख जीवयोनि के पाठ में बतलाए गए पृथ्वीकायादि के सात लाख आदि भेद
किस प्रकार बनते हैं?
योनि का शाब्दिक अर्थ होता है- उत्पत्ति स्थल । जीवों के उत्पत्ति स्थल को जीव योनि कहा गया। ये स्थल (योनि) भाँति-भाँति के वर्ण-गंध-रस - स्पर्श - संस्थान से युक्त होते हैं । यहाँ पृथ्वीकायादि जीवों के मूलभेदों में पाए जाने वाले वर्णादि की सर्व संभाव्यता की विवक्षा से यह कथन किया गया है। जिसे निम्न सारणी अनुसार समझा जा सकता है।
जीव
वर्ण गंध रस स्पर्श संस्थान
पृथ्वीकाय
2
5
8
अपकाय
2
5
8
ते काय
2
5
8
वायुकाय
2
5
8
मूलभेद
350
350
350
350
[ आवश्यक सूत्र
X 5
5
5
5
X
X
X
5
5
5
5
कुल
7 लाख
7 लाख
7 लाख
7 लाख