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परिशिष्ट-4]
195} 9. अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र और अनंत बल वीर्य, इन चारों मूल गुणों में
समानता होने से तीर्थङ्कर व सामान्य केवली दोनों को प्रथम पद में मानना चाहिए। 10. 'अरिहंताणं' पद की व्याख्या करते हुए आवश्यक नियुक्ति में अरिहंत' पद की सर्वप्रथम
व्याख्या की गई। तत्पश्चात् अरुहंत, अरूहंत, आदि पदों की व्याख्या की गई है। अरिहंत
पद की व्याख्या में तीर्थङ्कर तथा सामान्य केवली दोनों को सम्मिलित किया गया है। उपर्युक्त आधारों से स्पष्ट है कि सामान्य केवली भगवंतों को भी नवकार मंत्र के प्रथम पद में
माना जाना चाहिए। प्रश्न 148. प्रथम पद की वंदना में जघन्य बीस तथा उत्कृष्ट एक सौ साठ तथा एक सौ सत्तर
तीर्थङ्कर जी की गणना किस प्रकार की गई है ? उत्तर महाविदेह क्षेत्र कुल पाँच होते हैं । इनमें सदैव चौथे आरे जैसी स्थिति होती है एवं यहाँ तीर्थङ्करों
का सद्भाव भी शाश्वत कहा गया है। प्रत्येक महाविदेह क्षेत्र के मध्य में मेरुपर्वत है । इस कारण से पूर्व और पश्चिम के रूप में इनके दो विभाग हो जाते हैं। पूर्व महाविदेह के मध्य में सीता नदी
और पश्चिम महाविदेह के मध्य में सीतोदा नदी के आ जाने से एक-एक के पुनः दो-दो विभाग हो जाते हैं। अतः प्रत्येक महाविदेह के चार विभाग हो गए। प्रत्येक विभाग में आठ-आठ विजय हैं। अतः एक महाविदेह में 8 x 4 = 32 एवं पाँच महाविदेह में 32 x 5 =160 विजय होते हैं। प्रत्येक विभाग में जघन्य एक तीर्थङ्कर होते हैं, अतः जम्बूद्वीप के महाविदेह में 4, धातकीखण्ड एवं अर्द्धपुष्कर द्वीप के महाविदेह में 8-8 तीर्थङ्कर जघन्य होते ही हैं। इस प्रकार यह जघन्य 20 का कथन हुआ। जब उत्कृष्ट तीर्थङ्करों की संख्या हो तो प्रत्येक विजय में एकएक यानी 160 एवं उसी समय यदि पाँच भरत एवं पाँच ऐरावत में भी एक-एक यानी कुल 10
तो ये सब मिलाकर 170 तीर्थङ्कर उत्कृष्ट एक साथ हो सकते हैं। प्रश्न 149. 64 इन्द्र किस प्रकार होते हैं? समझाइए। उत्तर इन्द्र देवगति में ही होते हैं। चार प्रकार के देवता कहे गए हैं-भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी और
वैमानिक । भवनपति में उत्तर दिशा एवं दक्षिण दिशा में 10-10 यानी कुल 20 तथा इसी प्रकार व्यंतर में 16 x 2= 32 इन्द्र होते हैं । ज्योतिषी में चन्द्र और सूर्य में दो इन्द्र होते हैं । वैमानिक में प्रथम से आठवें देवलोक तक एक-एक इन्द्र एवं नवें-दसवें तथा ग्यारहवें-बारहवें देवलोक का एक-एक कुल 10 इन्द्र हुए। इस प्रकार चारों जाति के क्रमशः 20+32+2+10 = 64 इन्द्र होते हैं।