Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 234
________________ { 198 [आवश्यक सूत्र खाँसी आदि की आपवादिक अपरिहार्य क्रियाओं को छोड़, काया के व्यापार को, चेष्टा को रोक, काया से ऊपर उठना कायोत्सर्ग है। सो पुण काउस्सग्गो दव्वतो भावतो य भवति । दव्वतो कायचेट्ठानिरोहो, भावतो काउस्सग्गो झाणं ।। -आवश्यक चूर्णि, आचार्य जिनदासगणि प्रायः कायोत्सर्ग में 2 ही प्रकार के कार्य का विधान है1. निज स्खलना दर्शन/चिन्तन-इच्छाकारेणं का कायोत्सर्ग एवं प्रतिक्रमण के पहले सामायिक आवश्यक में कायोत्सर्ग। 2. गुणियों के गुणदर्शन/कीर्तन-लोगस्स का कायोत्सर्ग (सामायिक पालते व प्रतिक्रमण का पाँचवाँ आवश्यक) दशवैकालिक की द्वितीय चूलिका तो साधक को अभिक्खणं काउस्सग्गकारी' से कदम-कदम पर कायोत्सर्ग अर्थात् काया की ममता को छोड़ने की प्रेरणा कर रही है। संक्षेप में समाधान का प्रयास है, कि ववेचना व्याख्या सहित ग्रन्थों में उपलब्ध है। प्रश्न 155. लोगस्स के पाठ के संबंध में दिगम्बर परम्परा के ग्रंथ में प्रतिपादित किया गया है कि लोगस्स की रचना कुन्दकुन्दाचार्य ने की है। उसको पढ़ने से ज्ञात होता है कि प्रथम पद को छोडकर सभी पद एक-दो शब्दों के परिवर्तन के अलावा समान ही हैं। क्या आवश्यक सूत्र में प्राप्त लोगस्स का पाठ कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा रचित है? उत्तर दिगम्बर ग्रन्थों में शौरसेनी प्राकृत का उपयोग हुआ है जबकि श्वेताम्बर वाङ्मय अर्धमागधी भाषा में है। अतः दिगम्बर का लोगस्स मूल होने का प्रश्न ही नहीं और फिर कुन्दकुन्दाचार्य तो बहुत बाद में हुए, गणधर प्रणीत वाङ्मय अति प्राचीन है। लोगस्स ही क्या, कितने ही अन्यान्य सूत्र गाथाओं में समानता है, पर इससे उनका मौलिक और श्वेताम्बरों का अमौलिक नहीं कहा जा सकता है। प्रश्न 156. 'वोसिरामि' के स्थान पर वोसिरे' शब्द का प्रयोग कहाँ तक उचित है? उत्तर स्वयं को जब प्रत्याख्यान करना हो तो वोसिरामि' शब्द बोला जाता है तथा दूसरे को प्रत्याख्यान कराते समय वोसिरे' शब्द का प्रयोग किया जाता है। मान लीजिए, कोई उपवास माँग रहा है, कराने वाले को तो करना नहीं, वोसिरामि' बोलने से मैं वोसराता हूँ - स्वयं के त्याग हो जायेगा। अतः दूसरे को त्याग कराने हेतु व्याकरण की दृष्टि से 'वोसिरे' शब्द का प्रयोग उचित है।

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