________________
{ 140
[आवश्यक सूत्र हो, प्रकृति के विरुद्ध अंगों से कामक्रीड़ा करने की चेष्टा की हो, दूसरे के विवाह करने का उद्यम किया हो, कामभोग की तीव्र अभिलाषा की हो तो मैं इन दुष्कृत्यों की आलोचना करता हूँ। वे मेरे सब पाप निष्फल हों।
5. पाँचवाँ अणुव्रत-थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं, खेत्त-वत्थु का यथा परिमाण, हिरण्ण-सुवण्ण का यथा परिमाण, धण-धण्ण का यथा परिमाण, दुप्पय-चउप्पय का यथा परिमाण, कुविय का यथा परिमाण एवं जो यथा परिमाण किया है उसके उपरान्त अपना करके परिग्रह रखने का पच्चक्खाण जावज्जीवाए एगविहं तिविहेणं न करेमि, मणसा, वयसा, कायसा एवं पाँचवाँ स्थूल परिग्रह विरमण व्रत के पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-खेत्तवत्थुप्पमाणाइक्कमे, हिरण्ण-सुवण्णप्पमाणाइक्कमे, धणधण्णप्पमाणाइक्कमे, दुप्पय-चउप्पयप्पमाणाइक्कमे, कुवियप्पमाणाइक्कमे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
अन्वयार्थ-यथा परिमाण = जैसी मर्यादा की है। खेत्त-वत्थुप्पमाणाइक्कमे = खुली भूमि (खेत आदि) और घर दुकान आदि के परिमाण का अतिक्रमण करना । हिरण्ण-सुवण्णप्पमाणाइक्कमे = चाँदी सोने के परिमाण का अतिक्रमण करना । धण-धण्णप्पमाणाइक्कमे = धन-धान्य अनाज आदि के परिमाण का अतिक्रमण करना । दुप्पय-चउप्पयप्पमाणाइक्कमे = नौकर, पशु आदि के परिमाण का अतिक्रमण करना । कुवियप्पमाणाइक्कमे = घर की सारी सामग्री की मर्यादा का उल्लंघन किया हो।।5।।
भावार्थ-खेत-खुली जगह, वास्तु-महल-मकान आदि, सोना-चाँदी, दास-दासी, गाय, हाथी, घोड़ा, चौपाये आदि, धन्य-धान्य तथा सोना-चाँदी के सिवाय काँसा, पीतल, ताँबा, लोहा आदि धातु तथा इनसे बने हुये बर्तन आदि और शैय्या, आसन, वस्त्र आदि घर संबंधी वस्तुओं का मैंने जो परिमाण किया है, इसके उपरांत सम्पूर्ण परिग्रह का मन, वचन, काया से जीवनपर्यन्त त्याग करता हूँ। यदि मैंने खेत, वास्तुमहल-मकान के परिमाण का उल्लंघन किया हो, सोना, चाँदी के परिमाण का उल्लंघन किया हो, धन, धान्य के परिमाण का उल्लंघन किया हो, (इसके अतिरिक्त) दूसरे द्रव्यों की मर्यादा का उल्लंखन किया हो तो मैं उसकी आलोचना करता हूँ और चाहता हूँ कि मेरे वे सब पाप निष्फल हों।
6.छट्ठा दिशिव्रत-उड्ढदिसी का यथा परिमाण, अहोदिसी का यथा परिमाण, तिरियदिसी का यथा परिमाण एवं जो यथा परिमाण किया है उसके उपरान्त स्वेच्छा काया से आगे जाकर पाँच आस्रव सेवन का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए एगविहं तिविहेणं न करेमि', मणसा, वयसा, कायसा एवं छठे दिशिव्रत के पंचअइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-उड्ढदिसिप्पमाणाइक्कमे, अहोदिसिप्पमाणाइक्कमे, तिरियदिसिप्पमाणाइक्कमे, खित्तवुड्डी, सइ-अंतरद्धा, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
1. 'एगविह' के स्थान पर 'दुविह' और 'न करेमि' के स्थान पर 'न करेमि, न कारवेमि' भी बोलते हैं।