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परिशिष्ट-4]
161} व चिन्तन किया जाए तो प्रतीत होता है- महत्त्व संख्या का नहीं है, गुणों की महानता का है। उपाध्याय के 25 गुण सिद्ध भगवान के अनन्त ज्ञान के आगे बूंद के समान भी नहीं हैं। साधु के 27 गुण, चरणसत्तरी, करणसत्तरी को मिला देने पर भी सिद्धों के आत्मसामर्थ्य के आगे नगण्य हैं। अरिहंत के 12 गुणों में 8 तो पुद्गलों पर ही आधारित हैं, मात्र 4 ही आत्मिक गुण हैं। यह तो सिद्ध भगवान के गुणों की संख्या से भी कम तथा गुणात्मक दृष्टि से भी न्यून हैं । केवलज्ञान, केवलदर्शन में समानता होने पर 4 अघातीकर्म शेष रहने से वे आत्माएँ पूर्णता को प्राप्त नहीं हुई हैं। व्यावहारिक जगत् में जैसे सिक्के कई होने पर भी 500 के एक नोट की बराबरी नहीं कर सकते। संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो 500 का नोट तो एक ही है और सिक्के बहुत से हैं। पर महत्त्व उन सिक्कों से एक नोट का ज्यादा है। वैसे ही, सिद्धों में गुण संख्या की दृष्टि से न्यून हैं, पर गुणात्मक रूप से तो सर्वश्रेष्ठ ही हैं। अरिहंतों के 12 गुण तथा आचार्यों के 36 गुण संख्या की दृष्टि से तो ज्यादा हैं, पर अरिहंतों के अष्ट महाप्रातिहार्य के आगे आचार्य की सम्पदा न्यून है
और शेष 4 गुणों में आचार्य के सभी गुण स्वतः ही समाहित हो जाते हैं, जैसे-एक किलोमीटर
में कई मिलीमीटर समा जाते हैं। प्रश्न 15. तिक्खुत्तो के पाठ का क्या प्रयोजन है ? उत्तर यह गुरुवन्दन सूत्र है। आध्यात्मिक साधना में गुरु का पद सबसे ऊँचा है। संसार के प्राणिमात्र के
मन में रहे हुए अज्ञान अन्धकार को दूर करके ज्ञानरूपी प्रकाश फैलाने वाले गुरू हैं । मुक्ति के मार्ग
पर गुरु ही ले जाते हैं। ऐसे गुरूदेव की विनयपूर्वक वन्दना करना ही इस पाठ का प्रयोजन है। प्रश्न 16. तिक्खुत्तो के पाठ का दूसरा नाम क्या है ? उत्तर तिक्खुत्तो के पाठ का दूसरा नाम गुरुवन्दन सूत्र है। प्रश्न 17. वंदना कितने प्रकार की होती है? उत्तर वन्दना जघन्य, मध्यम तथा उत्कृष्ट के रूप में तीन प्रकार की होती है। जघन्य वन्दना का दूसरा
नाम फेटा वन्दन, मध्यम वन्दना का दूसरा नाम थोभ वन्दन तथा उत्कृष्ट वन्दना का दूसरा नाम द्वादशावर्त वन्दन भी कहा जाता है। जघन्य वन्दना मार्ग में चलते हुए गुरु भगवन्तों को ‘मत्थएण वंदामि' कहकर, दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर की जाती है। स्थानकादि में प्रवेश करते जब सन्त-सतियों के दर्शन होते हैं, तब यदि मध्यम वन्दना की अनुकूलता न हो तो यह वन्दना की जाती है। तिक्खुत्तो के पाठ से आवर्तन देते हुए दो हाथ, दो घुटने और मस्तक, ये पाँच अंग भूमि पर झुकाकर मध्यम वन्दना की जाती है। सामायिक, प्रतिकमण, वाचना, प्रश्नोत्तर, तत्त्वचर्चा आदि के पूर्व भी यह वन्दना की जाती है।