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[आवश्यक सूत्र होने पर भी लोग रात्रि में भोजन बनाते हैं, किन्तु रात्रि-भोजन त्याग से रात्रि में होने वाली हिंसा का अनर्थदण्ड रुक जाता है। 7. सायंकालीन सामायिक-प्रतिक्रमण आदि का भी अवसर प्राप्त हो सकता है। घर में महिलाओं को भी सामायिक-स्वाध्याय आदि का अवसर मिल सकता है। 8. उपवास आदि करने में भी अधिक बाधा नहीं आती, भूख-सहन करने की आदत बनती है, जिससे अवसर आने पर उपवास-पौषध आदि भी किया जा सकता है। 9. सायंकाल के समय
सहज ही सन्त-सतियों के आतिथ्य-सत्कार (गौचरी बहराना) का भी लाभ मिल सकता है। प्रश्न 112. रात्रि-भोजन करने से क्या-क्या हानियाँ हैं ? उत्तर रात्रि-भोजन करने से मुख्य हानि तो भगवान की आज्ञा का उल्लंघन है। इसके साथ ही बुद्धि का
विनाश, जलोदर का रोग होना, वमन, कोढ़, स्वर भंग, निद्रा न आना, आयु घटना, पेट की
बीमारियाँ आदि अनेक शारीरिक हानियाँ होती हैं। प्रश्न 113. रात्रि-भोजन-त्याग से क्या लाभ हैं ? उत्तर रात्रि-भोजन-त्याग से निम्न प्रमुख लाभ होते हैं
1. जीवों को अभयदान मिलता है। 2. अहिंसा व्रत का पालन होता है। 3. पेट को विश्राम मिलता है। 4. मनुष्य बुद्धिमान और निरोग बनता है। 5. दुर्व्यसनों से बच जाता है। 6. मन और इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं। 7. सुपात्र दान का लाभ मिलता है। 8. प्रतिक्रमण, स्वाध्याय आदि का लाभ मिलता है।
9. आहारादि का त्याग होने से कर्मों की निर्जरा होती है। प्रश्न 114. पौषध में किनका त्याग करना आवश्यक है? उत्तर पौषध में चारों प्रकार के सचित्त आहार का, अब्रह्म-सेवन का, स्वर्णाभूषणों का, शरीर की शोभा
विभूषा का, शस्त्र-मूसलादि का एवं अन्य सभी सावध कार्यों का त्याग करना आवश्यक है। प्रश्न 115. पौषध कितने प्रकार के हैं? उत्तर __ पौषध दो प्रकार के हैं-1. प्रतिपूर्ण और 2. देश पौषध । जो पौषध कम से कम आठ प्रहर के
लिए किया जाता है, वह प्रतिपूर्ण पौषध कहलाता है तथा जो पौषध कम से कम चार अथवा