________________
उत्तर
{ 188
[आवश्यक सूत्र प्रश्न 135. प्रतिक्रमण में कुछ अणुव्रतों के अतिचार की भाषा में ऐसे शब्दों का प्रयोग जो अनाचार
व्यक्त करते हैं, क्यों हुआ है? जैसे चौथे व्रत में 'इत्तरिय गमणे' 'अपरिग्गहिय गमणे' इत्यादि। इन शब्दों से भ्रान्ति न हो, इस हेतु इन शब्दों की जगह यह प्रयोग क्यों न किया जाय कि 'इत्तरिय गमणे' हेतु आलाप-संलाप किया हो' 'अपरिग्गहिय गमणे' हेतु आलाप-संलाप किया हो।' इसी तरह अन्य पाठों में भी अनाचार द्योतक शब्दों में सुधार/संशोधन क्यों न किया जाय? व्रत भंग की 4 अवस्थाएँ बताई जाती हैं
अतिक्रम इच्छा जानिये, व्यतिक्रम साधन संग।
अतिचार देश भंग है, अनाचार सर्व भंग ।। अर्थात् एक ही कार्य/इरादा/प्रवृत्ति किस अभिप्राय से किस स्तर की है इससे व्रत भंग की अवस्था का निर्णय होता है। महाबलजी (मल्ली भगवती का पूर्वभव) और शंखजी की क्रिया समान थी, पर परिणाम बिल्कुल भिन्न । महाबलजी माया के कारण संयम से गिरकर पहले गुणस्थान में चले गए और शंखजी सरलता के कारण भगवद् मुखारविन्द से प्रशंसित हुए। प्रायः सभी व्रतों के अतिचार अभिप्राय पर निर्भर करते हैं। अन्यथा वे अनाचार भी बन सकते हैं-भूलचूक से सामायिक जल्दी पारना तो अनाचार ही है। अतिचार से भी बचने के लिये प्रेरणा देते हुए, जाणियव्वा न समायरियव्वा कहा जाता है। यदि मारने की भावना से बंधन या वध किया गया और वह जीव बच भी गया तो अनाचार ही होगाअतः अतिचार और अनाचार में शब्द की अपेक्षा नहीं, भाव की अपेक्षा भेद रहता है। बार-बार अतिचार का सेवन स्वयं ही अनाचार बन जाता है। प्रमादवश लोक प्रचलित रूढ़ियों से जिन्हें अनैतिक नहीं माना जाता, ऐसी बातों को भी धार्मिक दृष्टि से अतिचारों में रखकर चेतावनी दी गई, जैसे- कन्या के अन्तःपुर में रखी जाने वाली कन्या सगाई होने पर भी अपरिगृहीत है(आज केयुग में धड़ल्ले से चल ही रहा है) अब यदि उसे छोड़ ही दिया जाता तो व्यक्ति को उसमें कुछ भी अनाचार-अतिचार ध्यान में नहीं आता। अतः उन-उन बिन्दुओं का समावेश करना, कितनी सुन्दर व्यवस्था है। अनाचार का कथन स्पष्टतः तो है नहीं। व्यक्ति सामाजिक परिवेश में उसे गलत भी नहीं मानता। जैसे-सस्ता माल खरीदना, रेल में बच्चे की उम्र कम बताना, आयकर में अन्यथा प्रतिवेदन देना आदि-आदि अतिचारों में सम्मिलित कर महर्षियों ने स्पष्ट रूपरेखा तो दिखा दी,