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उत्तर
परिशिष्ट-4]
167} प्रश्न 30. तिक्खुत्तो के पाठ में आये हुए ‘सक्कारेमि' और 'सम्माणेमि' का क्या अर्थ है ? उत्तर 'सक्कारेमि' का अर्थ है-गुणवान पुरुषों को वस्त्र, पात्र, आहार, आसन आदि देकर उनका
सत्कार करना । 'सम्माणेमि' का अर्थ है-गुणवान पुरुषों का मन और आत्मा से बहुमान करना । प्रश्न 31. पर्युपासना कितने प्रकार की होती है ?
पर्युपासना तीन प्रकार की होती है-1. विनम्र आसन से सुनने की इच्छा सहित वन्दनीय के सम्मुख हाथ जोड़कर बैठना, कायिक पर्युपासना है। 2. उनके उपदेश के वचनों का वाणी द्वारा सत्कार करते हुए समर्थन करना, वाचिक पर्युपासना है। 3. उपदेश के प्रति अनुराग रखते हुए
मन को एकाग्र रखना, मानसिक पर्युपासना हैं। प्रश्न 32. पर्युपासना से क्या-क्या लाभ हैं? उत्तर सम्यक् चारित्र पालने वाले श्रमण-निर्ग्रन्थों की पर्युपासना करने से अशुभ कर्मों की निर्जरा होती
है और महान् पुण्य का उपार्जन होता है। प्रश्न 33. वन्दन करने से किस गुण की प्राप्ति होती है ? उत्तर वन्दन करने से जीव नीच गोत्रकर्म का क्षय करता है और उच्च गोत्रकर्म का बन्ध करता है, फिर
वह स्थिर सौभाग्यशाली होता है, उसकी आज्ञा सफल होती है तथा वह दाक्षिण्यभाव अर्थात्
लोकप्रियता को प्राप्त कर लेता है। प्रश्न 34. 'इरियावहिया' के पाठ का क्या प्रयोजन है ? उत्तर आलोचना सूत्र' या 'इरियावहिया' के पाठ से गमनागमन के दोषों की शुद्धि की जाती है।
गमनागमन करते हुए प्रमादवश यदि किसी जीव को पीड़ा पहुँची हो, तो इस पाठ के द्वारा खेद
प्रकट किया जाता है। प्रश्न 35. 'इरियावहिया' के पाठ में कितने प्रकार के जीवों की विराधना का उल्लेख है? उत्तर इरियावहिया के पाठ में पाँच प्रकार के जीव-एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और
पंचेन्द्रिय की विराधना का उल्लेख है। प्रश्न 36. 'इरियावहिया' के पाठ में विराधना (जीव-हिंसा) के कितने प्रकार बतलाये हैं और
कौन-कौन से हैं? उत्तर 'इरियावहिया' के पाठ में विराधना दस प्रकार की बतलायी हैं, यथा-1. अभिहया, 2. वत्तिया,
3. लेसिया, 4. संघाइया, 5. संघट्टिया, 6. परियाविया, 7. किलामिया, 8. उद्दविया, 9. ठाणाओठाणं संकामिया और 10.जीवियाओ ववरोविया।