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[आवश्यक सूत्र प्रश्न 46. 'करेमि भंते' पाठ का क्या प्रयोजन है ? उत्तर करेमि भंते' पाठ से सभी पापों का त्याग कर सामायिक व्रत लेने की प्रतिज्ञा की जाती है। इसे
सामायिक-प्रतिज्ञा सूत्र भी कहते हैं। प्रश्न 47. 'करेमि भंते' पाठ को प्रतिक्रमण करते समय पुनः पुनः क्यों बोला जाता है? उत्तर समभाव की स्मृति बार-बार बनी रहे, प्रतिक्रमण करते समय कोई सावद्य प्रवृत्ति न हो, राग
द्वेषादि विषम भाव नहीं आए, इसके लिए प्रतिक्रमण में करेमि भंते का पाठ पहले, चौथे व पाँचवें
आवश्यक में कुल तीन बार बोला जाता है। प्रश्न 48. 'करेमि भंते' में सांकेतिक रूप से छः आवश्यक कैसे आते हैं? उत्तर 1. सामायिक आवश्यक-सामाइयं (“समस्य आयः समायः, सः प्रयोजनं यस्य तत् सामायिकम्।")
पद से सामायिक आवश्यक का ग्रहण होता है। 2. चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक - ‘भंते!' पद से दूसरा आवश्यक गृहीत हो जाता है। 3. वन्दना आवश्यक-“पज्जुवासामि' से तीसरा आवश्यक आता है। पर्युपासना तिक्खुत्तो में भी आता है। भंते-“सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्रैर्दीप्यते इति भान्तः स एव भदन्तः” सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र रत्नत्रय के धारक गुरु होते हैं, अतः ‘भंते' से भी तीसरे आवश्यक का संकेत मिलता है। 4. प्रतिक्रमण आवश्यक-पडिक्कमामि-“पडिक्कमामि इत्यस्य प्रतिक्रमामि।” से चतुर्थ आवश्यक गृहीत होता है। 5. कायोत्सर्ग आवश्यक-वोसिरामि' (“विविधं विशेषेण वा भृशं त्यजामि") पद से पाँचवें आवश्यक का ग्रहण होता है। 6. प्रत्याख्यान आवश्यक - सावज्जं जोगं पच्चक्खामि-(“पापसहितं व्यापार प्रत्याख्यामि।")
पदों से प्रत्याख्यान आवश्यक स्वीकृत होता है। प्रश्न 49. सामायिक से क्या लाभ है ? उत्तर सामायिक द्वारा पापों के आस्रव को रोककर संवर की आराधना होती है और सामायिक काल में
स्वाध्याय करने से कर्मों की निर्जरा होती है। इसके फल के बारे में कहा गया है कि प्रतिदिन लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान करने वाला व्यक्ति एक शुद्ध सामायिक करने वाले की समानता
नहीं कर सकता। प्रश्न 50. सामायिक व्रत कितने काल, कितने करण और कितने योग से किया जाता है? उत्तर सामायिक व्रत एक मुहूर्त यानी 48 मिनट के लिए, 2 करण (पाप स्वयं नहीं करना और दूसरे से
नहीं कराना) और 3 योग (मन, वचन और काया) से किया जाता है। प्रश्न 51. 'नमोत्थु णं' पाठ का क्या प्रयोजन है ? उत्तर इस पाठ के द्वारा सिद्ध और अरिहन्त देवों के अनेक गुणों का भाव पूर्वक वर्णन करते हुए उनकी
स्तुति की जाती है तथा उनके गुण हमारी आत्मा में भी प्रकट करना, मुख्य प्रयोजन है।