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[आवश्यक सूत्र खाइम, साइमं, चउव्विहंपि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, ऐसे चारों आहार पच्चक्ख के जं पियं इमं सरीरं इटुं, कंतं, पियं, मणुण्णं, मणामं, धिज्जं, विसासियं, सम्मयं, अणुमयं, बहुमयं, भण्डकरण्डगसमाणं, रयणकरण्डगभूयं, मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं वाला, मा णं चोरा, मा णं दंसमसगा, मा णं वाइयं, पित्तियं, कप्फियं, संभीमं सण्णिवाइयं विविहा रोगायंका परीसहा उवसग्गा फासा फुसंतु एवं पिय णं चरमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं वोसिरामि त्ति कट्ट ऐसे शरीर को वोसिरा के कालं अणवकंखमाणे विहरामि, ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररुपणा तो है, फरसना करूँ तब शुद्ध होऊँ, ऐसे अपच्छिम मारणंतिय संलेहणा झूसणा आराहणाए पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-इहलोगा-संसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणा-संसप्पओगे, कामभोगासंसप्पओगे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।।
अन्वयार्थ-अह भंते ! = इसके बाद हे भगवान!, अपच्छिम-मारणंतिय- = सबके पश्चात् मृत्यु के समीप होने, संलेहणावाली संलेखना = अर्थात् जिसमें शरीर, कषाय, ममत्व आदि कृश (दुर्बल) किये जाते हैं, ऐसे तप विशेष के, झूसणा = संलेखना का सेवन करना, आराहणा = संलेखना की आराधना, पौषधशाला = धर्मस्थान अर्थात् पौषधशाला, पडिलेहिय = प्रतिलेखन कर, उच्चार-पासवणभूमि = मलमूत्र त्यागने की भूमि का, पडिलेह कर = प्रतिलेखन अर्थात् देखकर के, गमणागमणे = जाने आने की क्रिया का, पडिक्कम कर = प्रतिक्रमण कर, दर्भादिक संथारा = डाभ (तृण, घास) का संथारा, संथार कर = बिछाके, दुरूह कर = संथारे पर आरूढ़ होकर के, करयल-संपरिग्गहियं = दोनों हाथ जोड़कर, सिरसावत्तं = मस्तक से आवर्तन (मस्तक पर जोड़े हुए हाथों को तीन बार अपनी बायीं ओर से घुमा) करके, मत्थए अंजलि-कट्ट = मस्तक पर हाथ जोड़कर, एवं वयासी = इस प्रकार बोले, निःशल्य = माया, निदान (नियाणा) और मिथ्यादर्शन इन तीन शल्यों से रहित, अकरणिज्ज = नहीं करने योग्य, जंपियं इमं सरीरं = और जो भी यह शरीर, इद्रं = इष्ट, कंतं = कान्तियक्त, पियं = प्रिय, प्यारा, मणुण्णं = मनोज्ञ, मनोहर, मणामं = मन के अनुकूल , धिज्जं = धैर्यशाली/धारण करने योग्य, विसासियं = विश्वास करने योग्य, सम्मयं = मानने योग्य/सम्मत, अणुमयं = विशेष सम्मान को प्राप्त, बहुमयं = बहुमत (बहुत माननीय) जो देह, भण्ड-करण्डगसमाणं = आभूषण के करण्डक (करण्डिया डिब्बा) के समान, रयण-करण्डगभूयं = रत्नों के करण्डक के समान जिसे, मा णं सीयं = शीत (सर्दी) न लगे, मा णं उण्हं = उष्णता (गर्मी) न लगे, मा णं खुहा = भूख न लगे, मा णं पिवासा = प्यास न लगे, मा णं वाला = सर्प न काटे, मा णं चोरा = चोरों का भय न हो, मा णं दंसमसगा = डांस व मच्छर न सतावें,