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[ आवश्यक सूत्र
समभिरुड, एवंभूत ये तीन नय वाले जो आवश्यक जानकार हैं और उपयोग रहित हो, उसे आवश्यक नहीं मानते हैं। क्योंकि जानकार है वह उपयोग रहित नहीं होता और जो उपयोग रहित है वह जानकार नहीं होता इसलिये ये आग से द्रव्यावश्यक ही नहीं मानते हैं ।
नो आगमतो द्रव्यावश्यक - (1) ज्ञ शरीर नोआगम से द्रव्यावश्यक - जैसे कोई पुरुष आवश्यक इस सूत्र के अर्थ का जानकार था, वह काल धर्म को प्राप्त हो गया। उसके मृतक शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भाव से आवश्यक इस सूत्र के अर्थ का जानकार था, वह काल धर्म को प्राप्त हो गया। उसके मृतक शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भाव से आवश्यक इस सूत्र का अर्थ सामान्य या विशेष या समस्त प्रकार के भेदानुभेदों द्वारा प्ररूपता था, तथा क्रिया विधि द्वारा सम्यक् प्रकार दिखलाता था, जैसे किसी घड़े में पहले शहद या घी रखा था, अब खाली हो जाने पर भी उस घड़े को देखकर कोई कहे कि वह शहद या घी का घड़ा था इत्यादि । (2) भव्य शरीर नोआगम से द्रव्यावश्यक - जैसे किसी श्रावक के घर पर लड़के का जन्म हुआ, उसे देखकर कोई कहे कि यह लड़का इस शरीर से जिनोपदिष्ट भाव वाले आवश्यक इस सूत्र का जानकार भविष्यकाल में होगा। जैसे नये घड़े को देखकर कोई कहे कि यह शहद या घी का घड़ा होगा इत्यादि ।
(3) तद् (ज्ञ शरीर, भव्य शरीर) व्यतिरिक्त नोआगम से द्रव्यावश्यक - इसके तीन भेद - (अ) लौकिक-जैसे कोई राजेश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठि, सेनापति आदि का प्रभात यावत् जाज्वल्यमान सूर्य उदय के समय मुँह धोना, दंत प्रक्षालन, तेल लगाना, स्नान, मज्जन करना, सर्षप, दूब आदि मांगलिक उपचारों का करना, आरिसे में मुख देखना, धूप, पुष्प माला, सुगन्ध, ताम्बूल, वस्त्र, आभूषण सब वस्तुओं द्वारा शरीर का शृङ्गार करके नित्य प्रति राजसभा, पर्वत या बाग-बगीचे में जाना, ये लौकिक तद् व्यतिरिक्त नो आगमतः द्रव्यावश्यक है । (ब) कुप्रावचनिक ज्ञ शरीर-'चरग चीरिग चम्म खंडिअभिक्खोडं-पंडुरग गोअम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढ सावगप्पभिइओ पासउत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलते इंदस्स वा खंदस्स वा रुंदस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगंदस्स वा अज्जाए वा दुग्गाए वा कोट्टकिरियाए वा उवलेवणसंमज्जणआवरि-सणधूवपुफ्फगंधमल्लाइयाई दव्वावस्सयाई करेंति से ते कुप्पावणियं दव्वावस्सयं (अनु. 20)। (1) खाते हुए फिरने वाले (2) रास्ते में पड़े हुए चीथड़ों को पहनने वाले (3) चर्म के पहनने वाले (4) भिक्षा माँगकर खाने वाले (5) त्वचा पर भस्म लगाने वाले (6) बैल को रमाकर आजीविका करने वाले (7) गाय की वृत्ति से चलने वाले (8) गृहस्थ धर्म को ही कल्याणकारी मानने वाले (9) यज्ञादि धर्म की चिन्ता करने वाले (10) विनयवादी ( 11 ) नास्तिकवादी (12) तापस (13) ब्राह्मण प्रमुख ( 14 ) पाखण्ड मार्ग पर चलने वालों का प्रभात पहले यावत् जाज्वल्यमान सूर्योदय के समय इन्द्र के स्थान पर, स्कन्द (कार्तिकेय) के स्थान पर, महादेव के स्थान पर, व्यन्तर विशेष के स्थान पर, वैश्रमण के स्थान पर, यक्ष व भूत ( व्यंतर विशेष) के स्थान पर, बलदेव के स्थान पर, आर्या प्रशान्त रूप देवी के स्थान पर, महिषारुढ़ देवी के