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[आवश्यक सूत्र
तस्स धम्मस्स का पाठ मूल- तस्स धम्मस्स केवलिपण्णत्तस्स अब्भुडिओमि आराहणाए, विरओमि
विराहणाए तिविहेणं पडिक्कतो वंदामि जिण-चउव्वीसं। संस्कृत छाया- तस्य धर्मस्य केवलिप्रज्ञप्तस्य अभ्युत्तिष्ठामि आराधनायै विरतोऽस्मि, विराधनया
त्रिविधेन प्रतिक्रामन् वंदामि जिनचतुर्विंशतिम्। अन्वयार्थ-तस्स धम्मस्स = उस धर्म की जो । केवलिपण्णत्तस्स = केवली भाषित है उस ओर । अब्भुट्टिओमि = उद्यत हुआ हूँ। आराहणाए = आराधना करने के लिए। विरओमि = विरत (अलग) होता हूँ। विराहणाए = विराधना से। तिविहेणं = मन, वचन, काया द्वारा । पडिक्कंतो = निवृत्त होता हुआ। वंदामि = वन्दना करता हूँ। जिण-चउव्वीसं = चौबीस तीर्थङ्करों को।
अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र का पाठ ऐसे अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र में तथा बाहर, श्रावक-श्राविका दान देवे, शील पाले, तपस्या करे, शुद्ध भावना भावे, संवर करे, सामायिक करे, पौषध करे, प्रतिक्रमण करे, तीन मनोरथ चिन्तवे, चौदह नियम चितारे, जीवादि नव पदार्थ जाने, ऐसे श्रावक के इक्कीस गुण करके युक्त, एक व्रतधारी जाव बारह व्रतधारी, भगवन्त की आज्ञा में विचरे ऐसे बड़ों से हाथ जोड़, पैर पड़कर, क्षमा माँगता हूँ। आप क्षमा करें, आप क्षमा करने योग्य हैं और शेष सभी को खमाता हूँ।
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