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[आवश्यक सूत्र 2. दूजा अणुव्रत-थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, कन्नालीए, गोवालीए, भोमालीए, णासावहारो, कूडसक्खिज्जे इत्यादि मोटा झूठ बोलने का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, एवं दूजा स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-सहस्सब्भक्खाणे, रहस्सब्भक्खाणे, सदारमंत-भेए', मोसोवएसे, कूडलेहकरणे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
अन्वयार्थ-कन्नालीए = कन्या या वर सम्बन्धी, गोवालीए = गाय आदि पशु सम्बन्धी, भोमालीए = भूमि भवन आदि, णासावहारो = धरोहर दबाने के लिए झूठ बोलना, कूडसक्खिज्जे = झूठी साक्षी देना, सहस्सब्भक्खाणे = बिना विचारे यकायक किसी पर झूठा आल (दोष) देना, रहस्सब्भक्खाणे = गुप्त बातचीत करते हुए पर झूठा आल (दोष) देना, सदारमंत-भेए = अपनी स्त्री का मर्म प्रकाशित किया हो, मोसोवएसे = झूठा उपदेश दिया हो, कूडलेहकरणे = झूठा लेख लिखा हो।।2।।
भावार्थ-मैं जीवनपर्यन्त मन, वचन, काया से स्थूल झूठ नहीं बोलूँगा और न बोलाऊँगा। कन्या-वर के संबंध में, गाय, भैंस आदि पशुओं के विषय में कभी असत्य नहीं बोलूँगा। किसी की रखी हुई धरोहर (सौंपी हुई रकम आदि) के विषय में असत्य भाषण नहीं करूँगा और न धरोहर को हीनाधिक बताऊँगा तथा झूठी साक्षी नहीं दूंगा। यदि मैंने किसी पर झूठा कलंक लगाया हो, एकांत में मंत्रणा करते हुए व्यक्तियों पर झूठा आरोप लगाया हो, अपनी स्त्री के गुप्त विचार प्रकाशित किये हों, मिथ्या उपदेश दिया हो, झूठा लेख (स्टाम्प, बहीखाता आदि) लिखा हो तो मेरे वे सब पाप निष्फल हों।
3. तीजा अणुव्रत-थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, खात खनकर, गाँठ खोलकर, ताले पर कूँची लगाकर, मार्ग में चलते हुए को लूटकर, पड़ी हुई धणियाती मोटी वस्तु जानकर लेना इत्यादि मोटा अदत्तादान का पच्चक्खाण, सगे सम्बन्धी, व्यापार सम्बन्धी तथा पड़ी निर्धमी वस्तु के उपरान्त अदत्तादान का पच्चक्खाण जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा एवं तीजा स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत के पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-तेनाहडे, तक्करप्पओगे, विरुद्ध-रज्जाइक्कमे, कूडतुल्ल-कूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।।
अन्वयार्थ-थूलाओ अदिण्णादाणाओ = स्थूल बिना दी वस्तु लेने रूप बड़ी, वेरमणं = चोरी से निवृत्त, खात खनकर = दीवार में सेंध लगाकर, धणियाति = मालिक की यानी, मोटी वस्तु = मोटी वस्तु के, जानकर लेना = अधिकारी की जानकारी होने पर भी उसको उठाने का, सगे सम्बन्धी = पारिवारिक जन की बिना आज्ञा कोई वस्तु लेनी पड़े। (व), व्यापार सम्बन्धी = व्यवसाय सम्बन्धी । (तथा), निर्धमी = शंका रहित, तेनाहडे = चोर की चुराई हुई वस्तु ली हो, तक्करप्पओगे = चोर की
1. स्त्रियाँ 'सदारमंतभेए' के स्थान पर 'सपइ-मंत-भेए' बोलें।