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चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण]
49} (4) पडिलेहे-वस्त्र को दोनों तरफ से अच्छी तरह से देखना चाहिए। (5) पप्फोडे-देखने के पश्चात् वस्त्र को धीरे-धीरे यतनापूर्वक झड़काना चाहिए। (6) पमज्जिज्जा-झड़काने के बाद वस्त्रादि को तीन बार यतना पूर्वक पूँजना चाहिए। (स) प्रमाद-प्रतिलेखना 6 प्रकार की(1) आरभटा-विपरीत रीति या शीघ्रता से प्रतिलेखना या एक वस्त्र को अधूरा छोड़कर दूसरे की प्रतिलेखना
करना। (2) सम्मर्दा-मुड़े हुये कोने सहित सल न निकले हुये वस्त्र की प्रतिलेखना करना सम्मर्दा प्रतिलेखना है।
अथवा उपकरणों के ऊपर बैठकर प्रतिलेखना करना। (3) मोसली-वस्त्र को ऊपर, नीचे और तिरछे दीवारादि पर लगाकर प्रतिलेखना करना । (4) पप्फोडणा-वस्त्र को जोर-जोर से झटकाना प्रस्फोटना प्रतिलेखना है। (5) विक्षिप्ता-प्रतिलेखना किये हुये वस्त्रों को बिना प्रतिलेखन किये वस्त्रों में मिला देना या वस्त्रादि को
इधर-उधर फैंकना। (6) वेदिका-प्रतिलेखन करते समय घुटनों के ऊपर, नीचे या पसवाड़ों पर हाथ रखना या दोनों घुटनों या
एक घुटने को भुजाओं के बीच रखना वेदिका प्रतिलेखना है। (द) प्रतिलेखना करता हुआ साधु यदि(1) आपस में कथा वार्ता करता है। (2) देश कथा आदि करता है। (3) दूसरों को पच्चक्खाण कराता है। (4) दूसरों को वाचना देता है। (5) स्वयं वाचना लेता है तो यह प्रतिलेखना में प्रमाद करने के दोष का भागी होता हुआ छ: ही काय के
जीवों का विराधक होता है।
मूल
चउत्थं समणसुत्तं पडिक्कमामि एगविहे असंजमे, पडिक्कमामि दोहिं बंधणेहिंरागबंधणेणं, दोसबंधणेणं। पडिक्कमामि तिहिं दंडेहिं-मणदंडेणं, वयदंडेणं, कायदंडेणं । पडिक्कमामि तिहिं गुत्तीहिं-मणगुत्तीए,