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परिशिष्ट-1]
127} निक्षेप चार-पदार्थों के जितने निक्षेप हो सके उतने निक्षेप कर देने चाहिए। यदि विशेष निक्षेप करने की शक्ति न हो तो चार निक्षेप तो अवश्य ही करना चाहिए । (1) नाम-निक्षेप, (2) स्थापना-निक्षेप (3) द्रव्य-निक्षेप, (4) भाव-निक्षेप।
(1) नाम-निक्षेप-लोक व्यवहार चलाने के लिए किसी दूसरे गुणादि निमित्त की अपेक्षा न रखकर किसी पदार्थ की संज्ञा रखना नाम निक्षेप है। जैसे-किसी बालक का नाम महावीर रखना । यहाँ बालक में वीरता आदि गुणों का ख़याल किये बिना ही महावीर शब्द का संकेत किया है। कई नाम गुण के अनुसार भी होते हैं। किन्तु नाम निक्षेप गण की अपेक्षा नहीं रखता।
(2) स्थापना-निक्षेप-प्रतिपाद्य वस्तु के सदृश अथवा विसदृश आकार वाली वस्तु में प्रतिपाद्य वस्तु की स्थापना करना स्थापना निक्षेप कहलाता है। जैसे जम्बूद्वीप के चित्र को जम्बू द्वीप कहना या शतरंज के मोहरों को हाथी, घोड़ा, वजीर आदि कहना।
(3) द्रव्य-निक्षेप-किसी पदार्थ की भूत और भविष्यत् कालीन पर्याय के नाम का वर्तमान काल में व्यवहार करना द्रव्य निक्षेप है। जैसे राजा के मृतक शरीर में यह राजा था' इस प्रकार भूतकालीन पर्याय का व्यवहार करना अथवा भविष्य में राजा होने वाले युवराज को राजा कहना।
कोई शास्त्रादि का ज्ञाता जब उस शास्त्र के उपयोग से शून्य होता है, तब उसका ज्ञान द्रव्य ज्ञान कहलाता है-'अनुपयोगो द्रव्यमिति वचनात्' अर्थात् उपयोग न होना द्रव्य है। जैसे सामायिक का ज्ञान जिस समय सामायिक में उपयोग से शून्य है, उस समय उसका सामायिक ज्ञान द्रव्य सामायिक ज्ञान कहलायेगा।
(4) भाव-निक्षेप-पर्याय के अनुसार वस्तु में शब्द का प्रयोग करना भाव निक्षेप है। जैसे-राज्य करते हुए मनुष्य को राजा कहना । सामायिक उपयोग वाले को सामायिक का ज्ञाता कहना।
इन 4 निक्षेपों में से नाम निक्षेप, स्थापना और द्रव्य निक्षेप ये 3 वन्दनीय नहीं है। एक भाव निक्षेप ही वन्दनीय है।
प्रमाण चार-(1) प्रत्यक्ष, (2) अनुमान, (3) उपमान और (4) आगम ।
(1) प्रत्यक्ष-इसमें व्यवहार की दृष्टि से दो शब्द आते हैं-प्रति+अक्ष । प्रति का अर्थ है तरफ या सम्बन्ध और अक्ष का अर्थ है आत्मा। जिसका सम्मिलित अर्थ यह हुआ कि-जो आत्मा के साथ सीधा सम्बन्ध रखता है, उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। न्याय ग्रन्थों में इसके दो भेद कर दिये हैं-सांव्यवहारिक और पारमार्थिक । पारमार्थिक के दो भेद हैं-विकल और सकल । अवधि ज्ञान और मन:पर्याय ज्ञान को विकल पारमार्थिक कहते हैं, और केवलज्ञान को सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं। अक्ष का अर्थ इन्द्रिय भी होता है। यह इन्द्रियजन्य ज्ञान सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहलाता है। इसके दो भेद-इन्द्रियजन्य और अनिन्द्रिय जन्य है। मन से होने वाला ज्ञान अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष कहलाता है और श्रोत आदि पाँच इन्द्रियों से होने वाला ज्ञान